Web Series Review - Jubilee

Web Series Jubilee Review In hindi

अगर किसी को बर्बाद करने के लिए, ख़ुद को बर्बाद कर दिया तो फिरक्या जीते ?

अक्सर कहा जाता है कि सफ़ेद और चमकदार सिनेमाई पर्दे के पीछे एक बेहद बेढंगी और अंधेर दुनिया बसती है। यानि कलाकार पर्दे के इस तरफ कुछ और होता और दूसरी तरफ कुछ और। 


Vikramaditya Motwane की Prime Video पर प्रसारित हो रही वेब सीरिज़ Jubilee इसी बात को और मज़बूती के साथ पुख़्ता बनाती है।


Jubilee Review In Hindi


Jubilee की कहानी साल 1947 के दौर की है। जहां देश को आज़ादी मिलने वाली है और बँटवारे की आग धीरे धीरे दंगों और जातीय हिंसा के रूप में फैल रही है। कहानी का केन्द्र में है Roy Talkies. 


जिसके मुखिया है श्रीकांत रॉय, जो सड़क से उठाकर सुपरस्टार बनाने की तर्ज़ पर काम करते हैं। उनकी पत्नी सुमित्रा भी इसमें मलिकाना हक़ रखती हैं। वे ख़ुद भी एक अदाकारा हैं। लेकिन पति पत्नी के रिश्ते में सब कुछ ठीक नहीं है। 


श्रीकांत रॉय को इन दिनों अपने आगामी सुपरस्टार मदन कुमार के लिए एक चेहरे की ज़रूरत हैं। इस दौरान कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनती हैं कि श्रीकांत लैब असिस्टेंट बिनोद दास को मदन कुमार बनाने की ठान लेते हैं। बिनोद दास उस क़िस्म का व्यक्ति है जो सुपरस्टार बनने के लिए किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार है। 


एक किरदार और भी है, जय खन्ना जो बँटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आया है। वह कराची में थियेटर कंपनी चलाता था। अब सब कुछ गँवा चुका है सिर्फ़ बाक़ी है तो बस डायरेक्टर बनने की ख्वाहिश। एक महिला किरदार है निलोफर जो बँटवारे के पहले तवायफ थी लेकिन अब सिल्वर स्क्रीन पर अपना भाग्य तलाश रही है। 


सिनेमा के अलावा और कुछ भी है जो सीरिज़ के आख़िरी हिस्से में इन सभी किरदारों को आपस में जोड़ता है वही कहानी का मुख्य तनाव भी है। 


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सिनेमा पर बात करने से पहले Jubilee के बाहरी आवरण पर बात करना ज़रूरी है। कहानी आज़ादी के पहले शुरू होती है फिर बँटवारे को अच्छे से कवर करती है फिर देश के राजनीतिक समीकरणों को बताते हुए, शीत युद्ध के प्रभाव को भी दिखाती है। प्लेबैक सिंगिंग, बड़ी स्क्रीन- बड़ा पर्दा जैसे बदलते सिनेमा को भी साथ लेकर चली है। 


Jubilee की सबसे ख़ास बात है कि ये अन्य बॉलीवुड पर बनी फ़िल्मों या सीरिज़ों की तरह किसी एक किरदार की कहानी पर केन्द्रित नहीं रहती बल्कि एक हिस्से के माध्यम से पूरी इंडस्ट्री के असल चेहरे को दिखाने की कोशिश करती है। 


इसमें Editing और ScreenPlay की तारीफ़ बनती है। मेकर्स जानते थे कि एक बार मदन कुमार बन सुपरस्टार बन गया फिर उसके बाद सीधे यदि उसके गिरावट का दौर दिखाते तो कहानी आम हो जाती लेकिन ऐसे में वे जय खन्ना से परिचित करवाते हैं। 


लेकिन श्रीकांत रॉय और शमशेर वालिया जैसे किरदार इन्हें स्क्रीन या कहानी में हावी नहीं होने देते बल्कि बीच बीच में अपना प्रभाव छोड़ते जाते हैं। 


लेकिन ऐसा भी नहीं है कि Jubilee हर मायने में Perfaction से कदम से कदम मिलाकर चलती है। बीच के कुछ हिस्सों में कहानी का पेस स्लो हो जाता है जहां कहानी कुछ देर के लिए पटरी से उतर जाती है। कोर्ट रूम ड्रामा कुछ ज़्यादा असर छोड़ता नहीं है। रूसियों की चर्चा बहुत होती है लेकिन उतना जोरदार मसाला उनसे मिलता नहीं है। इसके अलावा फ़ोन ट्रैप वाला वाक़या उस दौर के हिसाब से ज़्यादा नया है। 


खान सुपरस्टार नहीं बनते” “इतिहास तो कल लिखा जाएगा ना भाईजान मौक़ा आज हाथ रहा है।ये संवाद हो, ऊपर शुरूआत में लिखा संवाद हो या फिरअपनी गलती पर….” वाला संवाद हो। ये बात तो माननी पड़ेगी की हर एक किरदार के पास कुछ ऐसे संवाद तो हैं जो उस किरदार को दर्शक के ज़हन में ज़िंदा कर जाता है। 


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Amit Trivedi का हाज़िर जबाव संगीत मुर्दे में जान डालने वाला है। Qala के बाद Jubilee का Album बताता है कि Retro संगीत में Amit Trivedi का कोई हाथ नहीं पकड़ सकता। गीतों के बोल लिखने वाली Kausar Munir के तो क्या कहने। गाने वालों ने भी ज़बरदस्त काम किया है लेकिन मुझे Babuji.. वाले गाने में Sunidhi Chauhan सबसे बेहतर लगीं। 


अभिनय की बात करें तो Aparshakti Khurana ने बिनोद दास के किरदार से अपनी Side Kick वाली छवि को दरकिनार से कर दिया है। वह एकदम भोले से चेहरे के पीछे छुपे एक जूनूनी इंसान को बखूबी पर्दे पर उतरते हैं। 


जय खन्ना बने Sidhant Gupta मुझे व्यक्तिगत तौर पर Jubilee में सबसे बेहतर लगे। उनके किरदार में बहुत से मोड़ आते हैं। बँटवारे के पहले एक ख़ुशमिज़ाज लड़का, फिर अलगाव के थपेड़े झेलता युवक, फिर कुछ देर के लिए बेफ्रिकापन और फिर एक Passionate फिल्म निदेशक और एक्टर। उनके पास हर Situation के लिए अलग अलग हाव भाव हैं। 


Prosenjit ChatterJee कहानी के मुख्य पैरोकार के रूप में है और बहुत सहज लगते हैं। Ram Kapoor अपने अभिनय से अलग तरह का माहौल बनाते हैं। Nandish Singh Sandhu इन सब के बीच शायद सबसे Underrated माने जाएँगे। 


महिला किरदारों में Leading Lady, Aditi Rao Hydari के पास ज्यादा कुछ करने को है नहीं। वे ठीक ठाक ही हैं। Wamiqa Gabbi उन्हें कई मायनों में पीछे छोड़ती नजर आती हैं। लेकिन जब Wamiqa का किरदार निलोफर अकेला चलता है तो अच्छा लगता है लेकिन जब दूसरे किरदारों के सहारे चलता है तो ठिठक सा जाता है। Taxi वाले एक सीन में वे बेहतरीन समा बांधती हैं। 


इसके अलावा कराची स्टेशन वाले रफ़ीक का किरदार, मेकअप मैन मक़सूद, रघु जालानी और जय खन्ना के अपोज़िट शबनम छोटे मगर ना भूलने वाले किरदार हैं। 


कुल मिलाकर Jubilee जितने पर्दे पर दिखायी जाती है उतनी ही पर्दे के पीछे चलती है जिसे दर्शकों को समझना होगा, cinephiles के लिए सीरिज में बहुत कुछ है। 


- सत्यम (Twitter- @satyam_evJayte)

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