क्यों फिर गरमाया राफेल का मुद्दा? जानिए राफेल का पूरा सच।

Inside Story of Rafale Deal in hindi

राफेल डील, यूं तो यह मात्र एक भारत सरकार द्वारा फ्रांस कंपनी से खरीदे गए फाइटर विमान का का सौदा है। लेकिन समय समय पर इसमें आते ट्विस्ट और टर्न्स ने सरकार पर तथा अन्य शामिल धारकों पर सावलिया निशान खड़े किए हैं।

Rafale deal controversy in hindi

2019 चुनाव में कांग्रेस और राहुल गांधी ने इस मुद्दे पर सरकार को जमकर घेरने का प्रयास किया लेकिन लहर और कट्टरवाद का अंधड़ तमाम मुद्दों और दावों को उड़ाकर ले गया। वैसे देखा जाए तो राफेल का गणित इतना पेंचीदा है कि एक आम व्यक्ति के लिए इसे समझ पाना एक जटिल काम हो सकता है। तो आइए आसान शब्दों में इसे जानने का प्रयास करते हैं। 

Rafale फिर से चर्चा में क्यों? (Rafale deal in hindi)

सबसे पहले आपके मन में यह सवाल जरूर होगा कि राफेल डील जिस पर कालांतर में इतनी परतें चढ़ाई जा चुकी है, वह फिर से चर्चा का मुद्दा क्यों है?

दरअसल हाल ही में फ्रांसीसी सरकार ने राफेल डील की जांच के आदेश दिए हैं। उनका मानना है कि इस सौदे में फ्रांस की कंपनी Dassault को आकलन से अधिक लाभ प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि भारत में भी सुगबुगाहट तेज हो चली है।

क्या है पूरा मामला?  What is Rafale controversy

इस सौदे की गर्भावस्था अगस्त 2007 से प्रारंभ होती है। जब भारत का रक्षा विभाग 126 MMRCA यानि Medium Multi-Role Combat Aircraft फाइटर विमान खरीदने की योजना बनाता है। मई 2011 तक विभिन्न पैमानों पर परीक्षण के बाद राफेल और यूरो फाइटर विमानों को शार्टलिस्टेड किया जाता है। 

2012 में Dassault Aviation राफेल को सबसे कम कीमत पर उपलब्ध कराने की बोली लगाता है। इसके बाद 126 विमानों पर सहमति बन जाती है। जिसमें 18 रेडी टू फ्लाई विमान तथा अन्य 108 हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की मदद से Dassault से तकनीक प्राप्त करके भारत में ही निर्मित किए जाएंगे। 2014 में इसी के तहत 70-30 फॉर्मुले के साथ Dassault और HAL के बीच एग्रीमेंट मंजूर होता है। यह सौदा लगभग 54000 करोड़ के आसपास ठहरता है। जिसमें एक विमान की कीमत लगभग 526 करोड़ रुपए आंकी जाती है।

यह कहानी यहीं खत्म हो जानी चाहिए थी। लेकिन 2014 में भारत की जनता अपना भाग्य और देश एनडीए सरकार को सौंप देती है। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया जाता है और उनके ताबड़तोड़ विदेशी दौरे शुरू हो जाते हैं। 

इसी श्रृंखला में एक यात्रा फ्रांस की भी होती है। जहां पीएम एक नयी राफेल डील घोषित करते हैं जिसमें मात्र 36 राफेल विमान, उड़ान के लिए तैयार, अवस्था में भारत को सौंपे जाएंगे। साथ ही पुराने सौदे को समाप्त कर दिया जाता है।

अब इस सौदे की कीमत 59000 करोड़ तय की जाती है जिसमें मात्र 36, उड़ान के लिए तैयार विमान खरीदे जा रहे हैं। इसके मुताबिक एक विमान की कीमत लगभग 1638 करोड़ निकलती है। जिनमें से कई खेपों कुछ विमान भारत को प्राप्त हो चुके है।

क्या है विवादित ऑफसेट क्लोज?(what is offset clause)

यदि आप भक्त समुदाय से नहीं आते तो, अब तक की कहानी और आंकड़ों ने एक बार तो आपको अचरज में डाला ही होगा। लेकिन अभी कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बाकी है। वह ऑफसेट क्लोज। यह ऐसी शर्त है कि किसी भी देश की कंपनी यदि अन्य देश के साथ व्यापार करती है तो उसे संबंधित देश में सौदे की आधी राशि को निवेश करना होगा। 

आसान भाषा में भारत ने Dassulat से 59000 करोड़ का व्यापार किया तो Dassualt को भारत में लगभग 30000 करोड़ का निवेश करना होगा।

जिसका पालन Dassault ने किया भी‌। फ्रांसीसी कंपनी ने निवेश का का लगभग दो तिहाई हिस्सा रिलायंस के साथ संयुक्त वैंचर में लगाया तथा अन्य निवेश में से एक बड़ा हिस्सा अडानी समूह को भी जाता है। 

ध्यान देने वाली बात यह भी कि इन दोनों कंपनी रिलायंस एयरो एंड स्पेस और अडानी एयरोनॉटिक्स कंपनी का निर्माण 2015 में पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान ही हुआ।

वहीं 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति भी यह बयान देते हैं कि ऑफसेट विकल्पों के चयन भारत की सहमति से हुआ। लेकिन Dassulat इस दावे को खारिज करती है।

Rafale fighter Jet deal explained

जितनी कीमत पर 126 विमान खरीदे जाने थे लगभग उसी कीमत पर मात्र 36 राफेल? इस पर सरकार का पक्ष है कि वह राफेल के साथ अन्य अत्याधुनिक हथियारों और स्पेयर पार्ट्स को भी खरीद रही है। 

गौरतलब है कि Dassault Aviation ने इस डील से पहले जब आखिरी बार 2013-14 में अपनी कीमतों का निर्धारण किया था तब 500-600 करोड़ से अधिक की कीमत पर कोई भी विमान नहीं था।

एक दावा यह भी है कि यह डील किसी भी मिडिलमैन के बिना तय किया जाना था। वहीं एग्रीमेंट में एंटी करप्शन क्लोज का भी उल्लेख किया जाना था‌ लेकिन किन्हीं कारणों से इन्हें हटा दिया गया।

इन्हीं अनियमितताओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। दिसंबर 2018 में दिए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह बेहद संवेदनशील रक्षा सौदा है सुप्रीम कोर्ट इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।

इसके बाद विपक्षी दलों द्वारा लगातार संसदीय समिति की जांच की मांग उठती रही है लेकिन सत्ताधारी दल इसे गोपनीयता की दुहाई देते हुए ठुकराता रहा है। 

विपक्ष का मानना है सरकार ने सौदे में फेरबदल करके कुछ निश्चित उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाया है। 

दावा यहां तक भी है कि फ्रांस में स्थित रिलायंस मालिक का अन्य समूह 'फ्रांसटेल' को भी इस डील आर्थिक फायदा पहुंचाया गया है। पिछले दिनों बिचौलियों को डील के लिए 1 million gift देने की बात भी सामने आई थी।

बहरहाल, एक एक पहलू को ठीक से देखा जाए और भक्ति के माहौल से कुछ देर के लिए बाहर निकला जाए तो कुछ ऐसा है जो सरकार को तो मनगढ़ंत लगता है लेकिन जनता के मन में गढ़ता जरूर है।


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2 Comments

  1. पहली बार मैंने इस मुद्दे पर एक सरलतम लेख पढ़ा जिसमे सभी चीजों का समावेश है
    धन्यवाद लेखक महोदय

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