Garmi Web Series Review In Hindi
राष्ट्रपति बनाकर महामहिम बोल दोगे, हाथ जोड़कर झुक जाओगे, बाबा साहब के पैर भी छुए जाएँगे, लेकिन जैसे ही बात बेटी और रोटी की आएगी, तो रिश्ता नहीं हो सकता।
राजनीति और वेब सीरिज़ का नाता पुराना है। अब तक राजनीति पर कई वेब सीरिज़ बनी जिनमें से कई सीरिज में छात्र राजनीति को चिमटे से छूने का प्रयास किया गया। लेकिन Sony LIV की Garmi ने छात्र राजनीति की आग में हाथ डालने का काम किया है।
ऊपर का संवाद पढ़िए, सोचिए और उस पर अपने विचारो को साझा कीजिए।
Garmi के पहले एपिसोड के दो चार सीन के उतार चढ़ाव के बाद आने वाली अप्रत्याशित गाली सीरिज़ के मिज़ाज से परिचित करवाने के लिए काफ़ी है।
Garmi की पृष्ठभूमि त्रिवेणीपुर के विश्वविद्यालय में स्थित है। अरे वही त्रिवेणी पुर.. अतीकवा वाला। कहानी इलाहाबाद की है लेकिन इसे त्रिवेणीपुर के काल्पनिक नाम से दर्शाया गया है।
त्रिवेणीपुर विवि की छात्र राजनीति में एक सत्ता पक्ष, एक विपक्ष और एक लाल सलाम वाला तीसरा मोर्चा भी है।
लालगंज नामक एक छोटे से क़स्बे से UPSC का सपना लेकर त्रिवेणीपुर आया अरविंद शुक्ला धीरे धीरे इस राजनीतिक तिकड़म में उलझने लगता है। इसी बीच एक प्रेम कहानी पनपती है। राजनीति अपना असली रूप दिखाती है और फिर होता है विश्वासघात।
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यहाँ से लड़ाई व्यक्तिगत और बदले की भावना वाली हो जाती है। इसी बीच कॉलेज की छुट्टियाँ हो जाती हैं। और कहानी में कुछ नए किरदार आते हैं। कुछ नए दुश्मनों के ख़तरे के अंदेशों और छात्र संघ के चुनावों की आहट के साथ Garmi के पहले सीज़न की समाप्ति होती है।
ओटीटी जगत की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यहाँ बड़े चेहरे नहीं बल्कि अच्छी कहानियों पर दांव लगाया जाता है। Garmi में भी वैसा ही कुछ नज़र आया है। कहानी को अच्छे ढंग से उठाया गया है। राजनीति का एक यह भी चेहरा होता है या नेता कैसे क़द्दावर बनते हैं इस बात पर Garmi ज़ोर देती है।
मुद्दा सही पकड़ा है किरदारों की जमावट भी सही है लेकिन कमी कहानी के धाराप्रवाह या Flow में रह जाती है। मतलब राजनीति से जुड़ी हर दूसरी वेब सीरिज़ में जो होता वही सब कुछ इसमें भी है। वही पुलिस, राजनेता, जेल, गोली-बंदूक और शुद्ध हिंदी के शब्दों के साथ हर थोड़ी दूरी पर गालियाँ।
लेकिन कुछ चीजें बढ़िया भी हैं, जैसे रंगमंच के दृश्य। राजनीति के बीच में Hemlet के माध्यम से किरदारों का संवाद बढ़िया लगता है। जातिवाद और तथाकथित दलित सशक्तिकरण पर बीच बीच में किए गए व्यंग्य के तरीक़े पुराने हैं लेकिन मिज़ाज नया है।
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लाल सलाम वाले नेता जी का और बलदेव को और बेहतर एक्सप्लोर कर सकते थे लेकिन नहीं किया। राजनीति के पितामह के तौर पर बाबाओं का प्रयोग बहुत पुराना हो गया है, अब इसे छोड़ देना चाहिए।
अरविंद नायक के तौर पर जितना जोशीला है उतने बेहतर संवाद उसके लिए नहीं लिखे गए हैं। स्क्रीन प्ले भी कहीं कहीं बिखर सा जाता है। जेल के भीतर की कहानी की टाइमिंग खटकती है। आख़िरी एपिसोड से पहले कहानी स्लो ट्रैक पकड़ती है जो अंत को कमजोर बनाता है। लेकिन कहानी में कहीं भी ज़बरदस्ती के इंटीमेट सीन्स नहीं है।
अभिनय की बात की जाए तो । Vyom Yadav कहानी के नायक हैं और नायक क्यों हैं ये उनका अभिनय बेहतर ढंग से बताता है। लेकिन मुझे Jatin Goswami ज़्यादा बेहतर लगे। वह कई जगहों पर Vyom Yadav पर हावी होते नज़र आते हैं।
बिंदु सिंह बने Puneet Singh और गोविंद मोर्या बने Anurag Thakur दोनों बढ़िया एक्टिंग करते नजर आएं हैं। Mukesh Tiwari, Vineet Singh और Satyakam Anand के पास करने के लिए ज्यादा कुछ है नहीं।
ब्रिजेश बमबाज बने Ritik Raj के लिए Spacial Mention जरूरी है और कई ऐसे छोटे किरदार भी हैं जिन्होंने बढ़िया अभिनय किया है।
Garmi का पहला सीज़न Top Notch तो नहीं है लेकिन देखा जा सकता है।
- सत्यम (Twitter- @satyam_evJayte)
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