क्या चीन से निपट पाएंगे सात शक्तिशाली देश?

 

G7 summit and india

क्या चीन से निपट पाएंगे सात शक्तिशाली देश?

हाल ही में यूनाइटेड किंगडम (UK) के कार्नवाल नामक स्थान पर विश्व की सात शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के बीच वार्ता संपन्न हुई। यह बैठक का 47वां आयोजन था। भारत इस समूह का हिस्सा नहीं है, पिछले कुछ वर्षों से भारत इस बैठक में बतौर पर्यवेक्षक सदस्य जुड़ रहा है। इस बार G7 का मुख्य एजेंडा कोरोना महामारी से विश्व को मुक्त कराना तथा वैक्सीन का दुनिया भर में तेजी से प्रसार करना रहा। 

आर्थिक तथा सामरिक मुद्दे भी चर्चा के अहम हिस्सा रहे। वहीं चीन की महत्वाकांक्षी नीति ONE BELT ONE ROAD के जबाव अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने B3W (BBBW) का जो रोडमैप प्रस्तुत किया जो कि इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा। वहीं भविष्य की महामारी से बचाव के लिए स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत करना तथा जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन जैसे संकटों पर भी बैठक में विशेष स्थान दिया गया।

वहीं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बैठक में वर्चुअल रूप से सम्मिलित हुए। उन्होंने ONE EARTH ONE HEATH के विचार को आगे रखा।

तो आइये एक एक करके विस्तार में जानने का प्रयास करते है बैठक में शामिल मुद्दों के बारे में। लेकिन उससे पहले यह जानना जरुरी है कि G7 क्या है? G7 में कौन से देश शामिल है? और यह भी जानने का प्रयास करेंगे कि G7 भारत के लिए किस प्रकार महत्वपूर्ण है?

G-7 का इतिहास

G7 या ग्रुप ऑफ सेवेन(Group of Seven), विकसित देशों का अंतर सरकारी संगठन है। जिसमें USA, कनाडा, फ्रांस, इटली, UK, जर्मनी और जापान शामिल है। इसकी स्थापना वर्ष 1973 से मानी जाती है। शुरुआत में 6 देश USA, फ्रांस, इटली, UK, जर्मनी और जापान इसमें शामिल थे इसीलिए इसे G-6 कहा जाता था। 1976 में कनाडा को इसमें शामिल किया गया। 

1997 में रूस के शामिल होने के बाद यह संगठन G- 8 हो गया, परंतु 2014 में क्रीमिया विवाद के बाद रूस इस समूह से हट गया जिससे फिर सात देशों का समूह रह गया। इस समूह का कोई मुख्यालय नहीं है। सदस्य देश बारी बारी से इस बैठक की मेजबानी करते हैं तथा आपसी हितों के मुद्दों पर चर्चा करते है। इस बैठक चर्चा किए गये सभी नियम व शर्ते गैर बाध्यकारी होते है, सदस्य इन्हें अपने विवेक से चाहे तो लागू कर सकते हैं। 

भारत सहित ऑस्ट्रेलिया, साऊथ कोरिया, साऊथ अफ्रीका बतौर पर्यवेक्षक सदस्य शामिल हैं। वहीं आईएमएफ(IMF), विश्व बैंक (World Bank), यू एन महासभा (UNO) के प्रतिनिधियों को भी चर्चा में आमंत्रित किया जाता है।

47वें जी 7 समिट की खास बातें

चीन पर कड़ी प्रतिक्रिया हाल ही के वर्षो में चीन वैश्विक पृष्ठभूमि में एक नई शक्ति के रुप में उभरा है। और पहले से जमे अमेरिका जैसे देशों के लिए कड़ी चुनौती पेश करता रहा है। अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए चीन अधिनायकवाद की ओर बढ़ रहा है। चेक डिप्लोमेसी के तहत चीन ने विभिन्न देशों में संसाधनो की स्थापना कर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया है।

प्राचीन काल में चीन लगभग सारे विश्व में जल तथा स्थलीय मार्गों के माध्यम से रेशम का व्यापार करता था, जिसे सिल्क रूट कहा जाता था। वन बेल्ट वन रोड इनीशिएटिव या ओबेर नामक अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना के माध्यम से चीन सिल्क रूट की संकल्पना को पुनर्जीवित करना चाहता है।

चीन पर कड़ा रूख अपनाते हुए OBOR के जबाव में Build Back Better World B3W का प्रस्ताव रखा। जिसके माध्यम से वैश्विक अर्थव्यवस्था में 40 ट्रिलियन डॉलर के निवेश का उल्लेख किया गया। कोरोना वायरस उत्पत्ति की पारदर्शी जांच तथा मानवधिकारों उल्लंघन के विषय में भी चर्चा की गई।

ग्लोबल वैक्सीनेशन चर्चा का प्रमुख बिंदु बनकर उभरा, जी7 देशों ने अगले साल तक कोरोना वैक्सीन के 1 बिलियन डोज दान करने का ऐलान किया।

वहीं व्यापार के संबंध में, बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर कम से कम 15 प्रतिशत Global Minimum Tax लगाने पर सहमति का प्रावधान किया गया।

पर्यावरण संकट निपटान हेतु-

G-7 देशों की बात की जाए तो वह विश्व भर के ग्रीन हाऊस गैस उत्सर्जन का लगभग 60% हिस्सा उत्सर्जित करते है।

इसी से निपटान के लिए 2030 तक सामूहिक उत्सर्जन को आधा करने, 2025 तक जलवायु वित्त को बढ़ाने हेतु और 2030 ता भूमि और महासागरों के कम से कम 30% के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता दिखाई।

गरीब देशों को उत्सर्जन कम करने के लिए 100 अरब डॉलर देने पर सहमति प्रदान की। साथ ही 2025 तक कार्बन उत्सर्जन शून्य तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया। इसके साथ ही कोयले पर अंतरार्ष्ट्रीय निवेश पर रोक लगाने पर सहमति प्रदान की गई।

क्या है कार्बिस बे डिक्लेरेशन

यह भाविष्य में आने वाली महामारियों से निपटने के लिए वैश्विक स्वास्थ्य घोषणा पत्र है। यह कॉर्नवाल के कार्बिस बे रिसोर्ट में हस्ताक्षरित किया गया इसीलिए इसका नाम कार्बिस बेडिक्लेरेशन रखा गया है।

इसके माध्यम से कोरोना महामारी की वजह से हुई आर्थिक और मानवीय तबाही की पुनरावृत्ति के रोकने की कोशिश करने के लिए आवश्यक स्वास्थ्य ढांचा तैयार किया जाएगा।

बीमारी के वैक्सीन, इलाज और निदान विकसित करने और उसे लाइसेंस देने के समय को 100 दिन से कम करना शामिल है। ग्लोबल सर्विलांस नेटवर्क और जीनोम सिक्वेंसिंग की क्षमता बढ़ाने का लक्ष्य रखा है।

भारत के लिए जी 7 का महत्व और चुनौतियां  

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जी 7 में अपनी बात रखते हुए कहा इस कठिन समय सभी को वैश्विक साझेदारी की आवश्यकता है। स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की सार्वभौमिक आपूर्ति सबसे प्राथमिक कार्य है। साथ ही उन्होंने वैक्सीन पेटेंट पर ढील देने की बात पर भी जोर डाला।

जी 7, भारत के लिए वैश्विक राजनीतिक मंचो पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। इसके माध्यम से पश्चिमी देशों से अच्छा तालमेल बैठाया जा सकता है। 

भारत को यदि QUAD साथ-साथ G-7 देशों का भी साथ मिलता है तो चीन की आक्रामक नीतियों से निपटने के लिए एक बेहतर विकल्प तैयार किया जा सकता है। और यदि भारत-चीन के बीच तनाव बढ़ने से व्यापार पर प्रभाव पड़ता है तो भारत के लिए पश्चिम आपूर्ति का दरवाजा खोल सकता है। 

जी 7 के माध्यम से ही भारत यूरोपियन यूनियन से अपने रिश्तों को एक नया आयाम प्रदान कर सकता है। इसके अतिरिक्त भारत ईरान और रुस पर भी अपने रुख को स्पष्ट कर सकता है। 

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जी 7 के विस्तार के बारे में पहले ही अपनी मंशा व्यक्त कर चुके हैं। यदि ऐसा होता है तो भारत इसमें सदस्यता पाने का प्रमुख दावेदार हैं। 

भारत जी 7 समूह में प्रवेश से यूएन में स्थाई सदस्यता वाले को मजबूत कर सकता है। इसके साथ ही पाकिस्तान, कश्मीर और आतंकवाद के मुद्दों को वैश्विक रुप संबोधित भी कर सकता है।

इसके अलावा जी 7 के साथ कई चुनौतियां भी नजर आती है। जिसमें चीन और अमेरिका के बीच उत्पन्न शीत युद्ध जैसी स्थिति प्रमुख चुनौती बन सकती है।

वहीं भारत और पश्चिमी देश कई मुद्दों पर विभिन्न विचार रखते हैं। वहीं जी 7 सदस्यों के बीच आंतरिक संबंध भी स्पष्ट नजर नहीं आते हैं। इन बिंदुओं पर भी विचार किया जाना जरूरी है। 

जी 20 जैसे संगठनों का उभार और जी 7 में लैटिन देशों की उभरती अर्थव्यवस्थाओं को जगह ना दिया जाना भी इसके खिलाफ जाता है।

बहरहाल रूस और अमेरिका के राष्ट्राध्यक्षों की हालिया मुलाकात रुस और अमेरिका के शीत युद्ध पर शीत शांति का कार्य कर सकता है। ऐसे ही परिणामों और पूर्वानुमानों को ध्यान में रखते हुए जी 7 के बारे में विचार किया जाना चाहिए।

 

 

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