जब दुश्मन आपके सामने शारीरिक रूप से मौजूद हो तब कोई भी शख्स उसका आसानी से मुकाबला कर सकता है। लेकिन जब दुश्मन प्रत्यक्ष रुप से मौजूद ना होकर समाज की मानसिकता में में व्याप्त हो तो उससे लड़ना बेइंतहा मुश्किल प्रतीत होता है। इन्हीं सामाजिक दुर्भावना की संकरी गलियों से गुजरती पटकथाओं से सजी है इस हफ्ते नेटफ्लिक्स पर प्रदर्शित AJEEB DAASTAANS
इस श्रृंखला में लगभग ढ़ाई घंटे के समय में चार कहानियों को परोसा गया जो कि किसी भी तरीके से आपस में मेल नहीं खाती हैं। चारों कहानियां चार अलग अलग नजरियों से समाज की उस सच्चाई को बयां करते हैं जिसे हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं।
पहली कहानी : मजनू
कहानी उत्तरप्रदेश बाराबंकी में स्थापित है जहां बबलू यानि जयदीप अहलावत का गैर कानूनी धंधों का साम्राज्य है। इसी साम्राज्य के संरक्षण के लिए बबलू का विवाह राजनीतिक परिवार से जुड़ी लिपाक्षी यानि फातिमा बना शेख से कर दिया जाता है। परंतु यह संबंध मात्र एक गठबंधन बन कर रह जाता है। इसी बीच कहानी में एंट्री होती है राजकुमार यानि अरमान रल्हन की, जो व्यापार में बबलू की सहायता करता है। कहानी में राज तथा लिपाक्षी के बीच एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को भी दर्शाया गया है। इन सब के बीच कहानी पुराने बदले की शक्ल लेती हुई लव, सेक्स और धोखा थीम के साथ अंत तक पहुंचती है।
दूसरी कहानी : खिलौना
कहानी संभ्रांत वर्ग और निचले तबके की एक - दूसरे के प्रति बनावटी व वास्तविक मानसिकताओं को दर्शाती है। इस कहानी है में मीनल यानि नुसरत भरूचा, बिन्नी यानि इनायत वर्मा, सुशील यानि अभिषेक बनर्जी मुख्य भूमिका में हैं। मीनल एक घरेलू कामगार महिला है जो कि अपनी छोटी बहन बिन्नी के साथ रहती है। सुशील भी निचले तबके से आता है उसका मीनल के साथ जुड़ाव दिखाया गया। मीनल का किरदार हर उस कामकाजी महिला से प्रेरित जिसपर उसके मालिक तथा अन्य पुरुषों की लालची नज़र बनी रहती है। यही शारीरिक लालसायें और उनसे उत्पन्न बदले की भावना कहानी को अंजाम तक पहुंचाती है।
तीसरी कहानी : गीली पुच्ची
कहानी मुख्य रुप से भारती यानि कोंकणा सेन शर्मा के इर्द-गिर्द बुनी गई है। जिनके माध्यम से दिखाने का प्रयास किया गया है कि नाम पीछे लगने वाले कुछ शब्दों की विभिन्नता से एक व्यक्ति को कितने प्रकार के सामाजिक भेदभावों का सामना करना पड़ता है। वहीं प्रिया यानि अदिति राव हैदरी के माध्यम से पारिवारिक गाठ-जोड़ को दिखाने का प्रयास किया गया है।
चौथी कहानी : अनकही
यह कहानी मुख्य रूप से ऐसी लड़की पर केंद्रित है जिसकी सुनने की क्षमता उम्र के साथ साथ कम होती जा रही है। जिस कारण उससे बात करने के लिए उसकी मां नताशा यानि शैफाली शाह सांकेतिक भाषा सीख रही हैं। वहीं दूसरी पिता उदासीन रवैया अपनाते हैं। कबीर यानि मानव कौल जो सांकेतिक भाषा के शिक्षक के रूप में है। कहानी में नताशा और कबीर के प्रेम प्रसंग को दर्शाया गया है। जो कहानी के अंजाम तक पहुंचते पहुंचते स्वार्थ वश अलग थलग पड़े नजर आते हैं।
अगर कहानियों की बात की जाए तो चारों हिस्से अपनी अलग दुनिया में लें जाने का प्रयास करते हैं। जहां "मजनू" में एक तरफ समलैंगिकता तथा विवाहेत्तर संबंध से समाज के चेहरे को उकेरने का प्रयास किया गया है वहीं दूसरी ओर कहानी की की पटकथा काफ़ी हद तक बहुचर्चित 'मिर्जापुर' से प्रेरित प्रतीत होती है। वहीं दूसरी ओर 'खिलौना' सामाजिक विभेद और संबंध निकटता को बारीकी से दिखाया गया है। वहीं क्लाईमेक्स सीन कहानी को सनसनीखेज बनाता है। तीसरी कहानी समाज के मुंह जातिवाद के नाम पर एक जोरदार तमाचा मारने का कार्य करती है। साथ ही कुछ हिस्से ऐसे भी जिन्हें बताया तो गया पर साफ तौर पर नजर नहीं आते। वहीं 'अनकही' मानवीय सहभागिता को दिखाने का प्रयास करती है तथा बिना ज्यादा संवादों के बहुत कुछ कह जाती है।
एक्टिंग की बात करें तो जयदीप हमेशा की तरह अच्छे दिखे हैं। वहीं फातिमा के किरदार को कम गहराई दी गई है, सहयोगी कास्ट कहानी में कॉमिक हिस्से जोड़ती है। वहीं नुसरत भरूचा एक चालाक युवती के किरदार में तर्कसंगत है। वहीं इनायत वर्मा इतनी कम उम्र में भी अपनी कला का लोहा मनवाने में कामयाब रही है। अभिषेक बनर्जी का किरदार छोटा है मगर असरदार है। वहीं कोंकणा सेन शर्मा अपने अभिनय से मंत्रमुग्ध कर देती है। अदिति भी किरदार से मेल बैठा ही लेती है। वहीं मानव कौल बिना किसी संवाद के अपनी ओर ध्यान खींचते हैं। शैफाली शर्मा भी सही नज़र आती है।
अगर संपूर्ण फिल्म की बात की जाए तो नेटफ्लिक्स के स्तर पर यह सटीक बैठती है। सोशल मैसेज और बेहतरीन अभिनय के साथ यह फिल्म आपके वीकेंड को खास बनाने के लिए सर्वगुण संपन्न है।
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