Pegasus Data leak। जानिए क्यों मोदी सरकार पर लग रहें हैं जासूसी के आरोप?

Pegasus Spyware जासूसी मामला (what is Pegasus data leak)



Pegasus और जासूसी, ये शब्द इन दिनों बेहद चर्चा में है। इस मामलें में अबतक कई जाने माने नाम सामने आ चुके हैं। जिसमें राहुल गांधी, प्रशांत किशोर और विपक्ष के कई अन्य नेताओं के नाम भी शामिल हैं। विपक्ष के साथ साथ कुछ केन्द्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव, प्रहलाद पटैल आदि के नाम भी शामिल है।  

इसके अलावा एक सुप्रीम कोर्ट न्यायधीश, पूर्व CIB चीफ आलोक वर्मा, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त अशोक लवासा सहित उद्योगपति अनिल अंबानी का नाम भी सामने आ चुका है। देश के कई प्रतिष्ठित मीडिया समूहों के पत्रकार, तथा स्वतंत्र पत्रकारों के नाम सामने आ चुके है। ऐसा माना जा रहा इन सभी लोंगो की निजी जानकारियों को Pegasus Spyware के माध्यम से अवैध रूप से हासिल किया गया। 

क्या हैं पेगासस डाटा लीक का पूरा मामला? Pegasus Data leak in hindi

पेरिस स्थित गैर सरकारी संगठन (NGO) Forbidden Stories और Amnesty International ने मिलकर लीक नंबरों की एक सूची प्रकाशित की। जिसमें दुनिया भर के लगभग 50000, ऐसे नंबर शामिल थे जिनकी  Pegasus Spyware के माध्यम से जासूसी या हैकिंग की गई। कुछ नंबरों की फॉरेंसिक जांच करने पर इस तथ्य की पुष्टि भी हो गई। 

इसी सूची में भारत के सैकड़ो नंबरों का शामिल होना भी पाया गया। जिसका दावा, प्रतिष्ठित मीडिया समूह The Wire, The Guardian, Washington Post ने किया। इसके बाद कुछ भारतीय नंबरों की भी फॉरेंसिक जांच की गई, जिनके परिणामों ने संदेहों पर मोहर लगा दी। जांच में पाया गया कि 2017 से 2019  के बीच संबंधित नंबरो के डिवाइसों को पेगासस के माध्यम से निगरानी में रखकर, इनकी निजता को क्षरित किया गया।

2020 में The Citizen lab, Toranto के Diebert ने स्पष्ट किया था कि भारत Spyware से निगरानी के मामलों में अन्य देशों की तुलना में सबसे आगे है।

Pegasus spy in india (Pegasus data leak in hindi)

अब सवाल यह है कि भारत में जासूसी को लेकर सरकार पर सवाल क्यों उठाये जा रहें हैं? इसका एक जबाव बेहद सीधा है। Pegasus Spyware का निर्माण करने वाली इजरायली कंपनी NSO का कहना है कि वह इस निगरानी तंत्र के प्रयोग के अधिकार मात्र सरकारी एजेंसियों को देती है। मसलन यदि भारत में निगरानी हुई है तो उसमें भी सरकारी पक्ष शामिल है।

इस पर सफाई देते हुए सरकार का कहना है कि व्यक्तिगत जासूसी के सभी आरोप आधारहीन है। 

विशेषज्ञों की मानें तो सरकार Pegasus के प्रयोग से इनकार नहीं कर रही है लेकिन इसका प्रयोग आतंकवाद और अन्य अपवाद तत्वों की निगरानी मात्र के लिए किया गया है।

Pegasus क्या है। कैसे काम करता है Pegasus Spyware ( Pegasus kya hai in hindi)


Pegasus Spyware मोबाइल में व्हाट्सएप, आई मैसेज या टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से प्रवेश करता है। 

हैकर एक लिंक को संबंधित नंबर पर भेजता है जिसपर यदि यूजर क्लिक कर देता है तो उस डिवाइस पर यह वायरस एक्टीवेट हो जाता है। इसके बाद डिवाइस पर दर्ज प्रत्येक जानकारी कॉल रिकॉर्ड, जीपीएस, ईमेल तथा अन्य गोपनीय सामग्री का एक्सेस हैकर अवैध तरीकों से कर सकता है।

Pegasus से लोकतंत्र के लिए कैसे खतरा है? (Pegasus Spyware in india)

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 निजता के अधिकार  का उल्लेख करता है। Pegasus Spyware जैसे निगरानी तंत्रों का प्रयोग यदि सच है तो यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लघंन है।

सरकारी एजेंसियों को कुछ विशेष मामलों में जांच आदि के लिए जासूसी के अधिकार हैं। लेकिन NIA के अतिरिक्त अन्य किसी भी संस्था को संसदीय कानून के तहत मान्यता प्राप्त नहीं है। जिससे इन एजेंसियों की जबावदेही सुनिश्चित नहीं की जा सकती है। ऐसे में हो सकता इन्हीं में से किसी एजेंसी द्वारा Pegasus Spyware का उपयोग किया गया हो।

इसके अलावा यदि किसी ऐसे व्यक्ति की निगरानी की जाए, जो देश के विदेश, सैन्य जैसी संवेदनशील जानकारियों से जुड़ा हुआ है। तो हैकिंग से जुटाई गई जानकारी जांच एजेंसी के अलावा सेवा प्रदाता कंपनी तक भी पहुंचती है, जोकि देश की संप्रभुता पर खतरा बन सकता है।

इसी मामले में एक न्यायाधीश का नाम भी सामने आया है। तथा उस युवती का नाम भी जासूसी में जिसने पूर्व सुप्रीम कोर्ट मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। ऐसे में लोकतंत्र की रीढ़ कहीं जाने वाली न्यायपालिका पर भी सवाल उठते है।

क्या Pegasus भारत का Watergate है? राजनीति और जासूसी का रहा है पुराना इतिहास।

1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति Richard Nixon को विपक्षी नेताओं की जासूसी के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा था। जांच में उनके पार्टी ऑफिस Watergate में संदिग्ध हैकर्स पाए गए थे। जो विपक्षी नेताओं की गोपनीयता को भंग कर रहे थे।

भारतीय राजनीति में भी जासूसी का इतिहास पुराना रहा है। 1988 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को लगभग 50 सहयोगियों और विपक्षी नेताओं की जासूसी के आरोप में इस्तीफा देना पड़ा था।
1990 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने आरोप लगाया था कि तात्कालीन सरकार 27 राजनेताओं की अवैध तरीकों से टैपिंग की थी।

इसके अलावा Niira Radia मामले में 100 से अधिक लोगों की कॉल रिकॉर्डिंग लीक हुई। Tata टैप्स का मामला भी लंबे समय तक चर्चा का विषय बना रहा था। राष्ट्रपति IK Gujral के ऑडियो टैप लीक की भी CBI जांच के निर्देश दिए गए, बाद में सबूतों के अभाव में केस बंद कर दिया गया।










 


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1 Comments

  1. इसकी जाँच हेतु एक निष्पक्ष कमेटी का गठन किया जाना चाहिए

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