यूनिफॉर्म सिविल कोड या समान नागरिक संहिता
Uniform Civil Code या समान नागरिक संहिता। जब इस कानून के बारे बात की जाती है तो सबसे पहले ध्यान जाता है अखण्ड भारत में खिंची सांप्रदायिक रेखाओं पर। भारत सांस्कृतिक रुप से बेहद समृद्ध रहा है। पराधीन काल के दौरान इस देश में कई परंपराओं ने पैर पसारे हैं। जिनमें से कई वर्ग आज भी अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। विभिन्न धर्मों, जनजातियों में विवाह, विवाह विच्छेद तथा संपत्ति बंटवारे के लिए अनेकों विधि-विधान देखने को मिलते हैं।
कुछ तबकों ने इन मान्यताओं में परिवर्तन करते हुए वैधानिक प्रावधानों को अपनाया है, वहीं दूसरी ओर कुछ वर्ग आज भी परंपराओं से जुड़े हुए। ऐसी ही विभिन्न मान्यताओं और कानूनी प्रावधानों के बीच समय समय पर टकराव देखने को मिला है। इन्हीं मतभेदों से बचने के लिए भारतीय संविधान के भाग 4, अनुच्छेद 44 के अंतर्गत समान नागरिक संहिता का उल्लेख मिलता है। जो कि समस्त धार्मिक मान्यताओं के इतर कुछ विशेष नियमों को तरजीह देता है। लेकिन किन्हीं कारणों से यह अब तक लागू नहीं हो सका है।
क्यों चर्चा में है UCC? (Why UCC in news)
सवाल यह भी उठता है कि यह संहिता इस समय चर्चा में क्यों है? हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले के सुनवाई के दौरान UCC यानि Uniform Civil Code को जल्द से जल्द लागू करने की बात पर जोर दिया। दरअसल हाईकोर्ट में एक तलाक के मामले की सुनवाई चल रही थी। जिसमें पति, मीणा समुदाय की मान्यताओं के तहत तलाक का दावा कर रहा था, तो वहीं पत्नी पक्ष हिन्दू मैरिज एक्ट के अनुसार दावे को अवैध मान रहा था।
हाईकोर्ट ने कहा कि भारत आज सांप्रदायिकता के विभाजन और जातिगत बंधनों से बहुत ऊपर उठ चुका है। जिससे शादी, तलाक और अन्य प्रावधानों में समस्या देखी जा सकती है। साथ ही युवा पीढ़ी इन मान्यताओं को दरकिनार कर रही है। ऐसे में भविष्य की मुश्किलों से बचने के लिए, अनुच्छेद 44 में वर्णित समान नागरिक संहिता को समय रहते प्रभाव में लाना जरूरी है।
ऐतिहासिक और संवैधानिक पक्ष (All about UCC in hindi)
संविधान निर्माताओं ने इस बात का ध्यान रखा था कि सांस्कृतिक विविधता भविष्य में विवाद की स्थिति उत्पन्न कर सकती हैं। इसी अनुच्छेद 44 के अंतर्गत यूनिफॉर्म सिविल कोड का प्रावधान किया गया था। लेकिन विभाजन के वक्त जारी साम्प्रदायिक गतिरोध के चलते इसे त्वरित प्रभाव से लागू नहीं किया गया। इसे लागू करवाने का फैसला राजकीय विवेक पर छोड़ दिया गया। लेकिन कोई भी सरकार अबतक इसे लागू करवाने में सक्षम नहीं हो सकी है।
समय समय पर इसके संदर्भ चर्चा जरूर हुई है। 1954 में जब स्पेशल मैरिज एक्ट लागू हुआ तब यह कानून प्रकाश में आया। 1956 में लागू हिंदू कोड बिल जिसमें हिंदू और मुस्लिम वर्गों की अलग उत्तराधिकारी नियमों को स्वीकार किया गया तब भी अनु.44 चर्चा में रहा। 1986 में राजीव सरकार के दौरान शाह बानो मामले में तथा 2003 में राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने जब इसके पक्ष में अपनी सहमति जाहिर की तब भी इस संहिता के लिए सुगबुगाहट तेज हुई लेकिन किसी परिणाम में नहीं बदल सकीं।
समान नागरिक संहिता विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता, गोद लेने के नियम तथा संपत्ति के बंटवारे के सभी धार्मिक रीति-रिवाजों से हटकर नियमों में एकरुपता की बात करता है। अनुच्छेद 44 को राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत रखा गया है।
UCC और चुनौतियां (challenges with uniform Civil Code)
तो सवाल यह उठता है कि समान नागरिक संहिता या UCC अभी तक लागू क्यों नहीं हो सका है? इसे लागू करने में कुछ सामाजिक, भौगोलिक और जातिगत कारण बाधक बनते हैं। कुछ राजनीतिक पक्ष भी इसे प्रभावी ना कर पाने में बाधक सिद्ध हुए हैं।
जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम समुदाय की बहुलता है। जो इस संहिता के लिए अपवाद सिद्ध होता है। जानकारों का मानना है कि यदि कश्मीर में इसे लागू किया गया तो वहां के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है।
वहीं पूर्वोत्तर सहित देश के कई राज्य को अनुच्छेद 371 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त है। जो कि विभिन्न भौगोलिक और धार्मिक परिस्थितियों के अनुरूप आवंटित किया गया है। ऐसे में UCC इन राज्यों के हितों में टकराव पैदा कर सकता है।
भारत में राजनीतिक दलों की चुनावी रणनीति जातिगत आंकड़ों पर ही तैयार की जाती है। ऐसें में सत्ताधारी दलों में समान नागरिक संहिता को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नजर आती है।
अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण और अपनी धार्मिक मान्यताओं का निर्वहन करने की छूट प्रदान करता है। जबकि यह कानून इसके विपरीत सा लगता है।
समान नागरिक संहिता क्यों महत्वपूर्ण है?
(Why uniform Civil Code is important)
इन सब परिणामों को ध्यान में रखते हुए हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यूनिफॉर्म सिविल कोड कुछ ऐसे वर्गों के हितों का भी संरक्षण करेगा जो धर्म आदि की सत्ता के दबाव में अपने ऊपर हो अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते। यह विभिन्न कानूनों के बीच समानता स्थापित करके भारत की जटिल न्याय व्यवस्था के प्रयोग को सरल बनाने का कार्य भी करेगा। साथ ही यह संविधान में वर्णित धर्म निरपेक्षता का ध्वजवाहक भी बनेगा।
विभिन्न धार्मिक अधिकार पुरूषों को एक से अधिक विवाह करने की अनुमति देतें है। इनमें कुछ विशेष परिस्थितियों और पहली पत्नी से लिखित अनुमति होना जरूरी है। लेकिन जब इसी परिस्थिति में एक महिला को रखकर देखा जाए तो शायद मायने पूरे तरीके से बदल जाते हैं। जब कोई स्त्री एक से अधिक पुरुषों के संपर्क में आ जाती है तो समाज उससे वैश्या के समान व्यवहार करने लगता है। तो बात आती है स्त्री पुरुष के बीच इतनी आसमानता क्यों? यूनिफॉर्म सिविल कोड ऐसे ही अस्पष्ट और विवादित पहलुओं को संबोधित करता हैं।
आगे की राह (Saman nagrik sanhita in hindi)
नागरिक दंड संहिता, चुनाव हेतु आचार संहिता और न्याय संहिता का पालन तो करतें हैं लेकिन विवाह,गोद लेने आदि में अलग अलग नियमों को तरजीह देते हैं ऐसे में जरूरी है कि सभी नागरिक जब समान अधिकारों का प्रयोग और समान कर्तव्यों का पालन करते हैं तो विभिन्न पारिवारिक मामलों में केवल एक जाति के नाम पर में अंतर क्यों?
इसलिए जरुरी है कि सरकारें समाज में समन्वय स्थापित कर इन नियमों को लागू करें। यह धार्मिक रुढ़िवादता और लोकहितवाद के लिए महत्वपूर्ण सिद्ध होगा। साथ ही गोद लेना, विवाह करने, उत्तराधिकार के मामले में चरणबद्ध तरीके से नियम बना सकती है।
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