Web Series Review - Jehanabad - Of Love and War

Jehanabad - Of Love and War Review In Hindi 

वो नहीं देंगे तो हम छीन लेंगे। 

Jehanabad क़स्बा बिहार की राजधानी पटना से क़रीब पचास किमी दूरी पर स्थित है। इस शहर की पहचान लंबे समय से नक्सल प्रभावित क्षेत्र के रूप में होती रही है। वैसे तो इस शहर ने नक्सलवाद का एक लंबा दौर झेला है लेकिन इसकी देशभर में चर्चा 2005 की Jehanabad Jail Break की घटना के बाद शुरू हुई।  

हाल ही Sony LIV पर प्रसारित हो रही वेब सीरिज Jehanabad - of Love and War इसी घटना पर आधारित है। जिसमें 300 से अधिक कैदी Jehanabad की जेल तोड़ कर फरार हो गए थे इनमें से ज्यादातर कैदी नक्सलवादी संगठनों से जुड़े हुए थे। 

कहानी दीपक नाम के क़ैदी से शुरू होती है, जिसका बिहार और आसपास के क्षेत्रों में नक्सली के तौर पर बड़ा नाम है। जो Jehanabad के जेल में बंद है। जिसे छुड़ाने की क़वायद ही सीरिज़ का मुख्य तनाव है। सब प्लॉट्स में कहानी एक प्रेमी युगल को दिखाती है जो गुरू शिष्या के तौर पर प्यार के परवान चढ़ते है। 


इसके अलावा एक नेताजी भी है। क्राइम पृष्ठभूमि की वेब सीरिज़ है, नेताजी भी हैं तो ज़ाहिर सी बात है चुनावी साल तो होगा ही। तो राज्य में कुछ दिनों में चुनाव हैं। नेताजी की राजनीति, जेल में बंद नक्सली और प्रेमी युगल इनका आपस में क्या कनेक्शन है इसके लिए Jehanabad - of Love and War देखने से बेहतर कोई जबाव नहीं हो सकता। 


बता करें समीक्षा की तो Sony LIV का यह पका पकाया Genre है, जहां राजनीति, चुनाव और हिंसा एक ही साथ चलते हैं। ऐसे ही कुछ प्लॉट हम पहले कई वेब सीरिज़ में देख चुके हैं। इस सीरिज़ को जो सबसे अलग बनाता है वह है नक्सलवाद वाला एंगल। 


कहा जा सकता है कि ओटीटी पर अब तक यही एक ऐसा विषय है जिसे एक्सप्लोर नहीं किया गया था। यह सीरिज़ उस कमी को कुछ हद तक पूरा करती नज़र आती है। कहानी यही मुख्य प्लॉट है जो बेहतर और परतदार है लेकिन इसके अलावा सीरिज़ को सब प्लॉट की कमी ज़ोरदार खलती है। 

प्रेम कहानी लगभग हर दूसरी कहानी जैसी ही है। किरदारों की जमावट के नाम पर कुछ भी नहीं है। वेब सीरिज़ में Twist के लिए महत्वपूर्ण माने जाने वाले Flashbacks कहानी से नदारद हैं। कुछ अहम किरदारों की कुछ बैक स्टोरी को दिखा कर किरदारों को रोचक बनाया जा सकता था। 


राजनीति वाले छोर पर Rajat Kapoor अकेले खड़े नजर आते हैं। शुरू से अंत तक पता ही नहीं चलता उन्हें क्यों दिखाया जा रहा है। ना ही उनके प्लॉट सही ढंग से समेटा गया है। चुनाव और राजनीति मात्र खानापूर्ति लगती है। 


ऐसा ही अधपका सा नक्सलवाद वाला मुद्दा है। जहां कुछ चेहरों पर पूरा ढाँचा चलता है। जहां कुछ ज़मीनी घटनाएँ दिखाकर मज़बूत किया जा सकता था। सूरज सिंह वाला चैप्टर अच्छा लगता है लेकिन उसे जल्दी बंद कर दिया जाता है। 


एडिटिंग की कमियाँ भी कुछ सीन में खुलकर सामने आती हैं। गला काटने वाले सीन में VFX का प्रयोग बेहद साधारण है, वहीं कहानी के नायक एक सीन में चिट्टी दिखाते है जो दो बार में दो अलग तरीक़े की नज़र आती है। 


इन सब के बीच अभिनय का स्तर हर एपिसोड के साथ ऊपर की ओर चढ़ता नज़र आता है। Ritwik Bhowmik इस किरदार से अपने अभिनय की एक और परत खोलते नजर आते हैं। पूरी सीरिज में आप उनके सादगी भरे अभिनय से नजरें नहीं हटा सकते। 


Parambrata Chattopadhyay बहुत कुछ करे बिना ही बहुत कह जाते हैं। उन्हें देखते हुए यह अंदाज़ा लगाना कठिन है कि उनके किरदार का अगला कदम क्या होगा। कोर्ट रूम सूरज सिंह के कत्ल वाले सीन में तो वह ज़बरदस्त लगते हैं। 


वहीं Rajat Kapoor बताते है कि उन्हें क्यों इस तरह के किरदारों के लिए चुना जाता है। उनकी डायलॉग डिलेवरी और शारीरिक तालमेल की जुगलबंदी बढ़िया है। 


Harshita Gaur का अभिनय उनके लिए इस तरह के कई और किरदार दिलाएगा। Satyadeep Mishra कम लागत में अधिक मुनाफ़े वाला सौदा हैं, उनका अभिनय भी बढ़िया है। 


इसके अलावा कस्तूरी की दोस्त आयशा और दीप्ति, उनके भाई सोनू , दारोग़ा सुबोध और महिला नक्सल लक्ष्मी, इन किरदारों का स्क्रीन स्पेस कम ज़रूर है लेकिन अब ये आगे लगातार नज़र आते रहेंगे। 


कुल मिलाकर देख तो सकते हैं लेकिन आख़िरी में यही लगेगा कुछ गुंजाइश रह गए है। 


-सत्यम 

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