कितनी दमदार है, SARDAR UDHAM की कहानी
Sardar Udham Review in Hindi
"जंग बड़ी बेईमान चीज है, आपको लगता है,आप इसे जीतते हो,कोई नहीं जीतता। केवल घृणा जीतती है।"
आजादी और जंग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जहां आजादी की मांग है वहां जंग होनी ही है। भारत की आजादी के लिए भी बहुत सी जंग लड़ीं गईं। ऐसी ही कई गुमनाम जंगों में शामिल है सरदार ऊधम सिंह की कहानी। जिसे Surajit Sircar ने फिल्म Sardar Udham के माध्यम से पर्दे पर उतारने का प्रयास किया है। पहली नजर में देखा जाए तो Sardar Udham की कहानी Masterpiece नजर आती है।
Sardar Udham Full cast
सबसे पहले कास्ट की बात की जाए तो, फिल्म में मुख्य भूमिका में विकी कौशल है। जो शहीद सरदार ऊधम सिंह के किरदार को निभा रहे हैं। कहानी के कुछ हिस्सों में वनिता संधू उनका साथ देती हैं। इसके अलावा कैमियो रोल में अमोल पाराशर Shaheed-E-Azam भगत सिंह का किरदार निभाते हैं। शॉन स्कॉट, स्टीफन होगन के अलावा अन्य कई अंग्रेजी कलाकार सहयोगी भूमिका में हैं।
Sardar Udham Full Story in Hindi
कहानी की शुरुआत Sardar Udham Singh की इंग्लैंड यात्रा से होती है। जहां वे Jallianwala bagh Massacre का बदला लेने पहुंचते हैं। फिल्म के पहले आधे घंटे में ऊधम सिंह जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय पंजाब के गवर्नर रहे माइकल ओ'डायर को मार गिराते हैं। उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाता है।
इसके बाद कहानी लगभग डेढ़ घंटे तक फ्लैशबैक और वर्तमान में अदल बदल होती है। जिसमें अंग्रेजों की प्रताड़ना के साथ, हत्या की पृष्ठभूमि को दिखाया जाता है। आखिरी घंटे से पहले क्रांतिकारी ऊधम सिंह को फांसी की सजा सुना दी जाती है।
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लगभग एक घंटे लंबे क्लाईमेक्स में कहानी जलियांवाला बाग में स्थित है। जहां अंग्रेजों की क्रूरता और बर्बरता का सैलाब उमड़ता है। जो अपने पीछे, कारतूस के ढेर, जालियांवाला बाग की दीवारों पर खून के धब्बों, के अलावा, लाशों के ढेर में खड़े ऊधम सिंह को छोड़ जाता है।
Sardar Udham Full Movie Review
अब रिव्यू की बात की जाए तो ऊधम सिंह को जानने वालों के लिए कहानी नयी नहीं है। लेकिन शूजित सरकार ने जिस ढंग से इसे पेश किया वह तारीफ योग्य है। जेल के सीन्स में अंग्रेजों का असली चेहरा दिखाते हैं। तो वहीं जालियांवाला बाग का चित्रण सिहरन और गुस्सा पैदा करता है। उसके बाद विकी कौशल का अभिनय क्रांतिकारी से साक्षात्कार करवाता है। हत्याकांड के बाद के सीन्स में उनके मूक अभिनय ने ऊधम सिंह को जीवित किया है।
फिल्म में देशभक्ति के नाम कोई चिल्लाने वाले डायलॉग और बॉलीवुड तड़का नहीं लगाया गया है। बल्कि पूरी कहानी डायलॉग पर कम और इमोशन पर ज्यादा दौड़ती है। इसके अलावा कहानी का धीमा और लंबा होना, इसका निगेटिव प्वाइंट बन सकता है।
बहरहाल, यदि आप जालियांवाला बाग की हकीकत को जानना चाहते हैं और 15 अगस्त और 26 जनवरी के अलावा भी देशभक्ति जिंदा रखते हैं तो फिल्म आपके लिए ही है।
# SATYAM SINGHAI
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