Darlings (Netflix) Review in hindi
औरतों के ख़िलाफ़ हिंसा आपके लिए हानिकारक है।
घरेलू हिंसा और महिला सशक्तिकरण का दो टूक संदेश देती इस वैधानिक चेतावनी के साथ ही Netflix और Red Chillies Entertainment के आपसी सामंजस्य से बनी फ़िल्म Darlings का पर्दा गिर जाता है।
पहली नज़र में Darlings की कहानी घरेलू हिंसा से पीड़ित के उत्थान की लगती है लेकिन अंदर तक झांका जाए तो कहानी कुछ और ही बयान करती है। वैसे तो घरेलू हिंसा पर पहले भी कई लेकिन Darlings पुरानी सड़क पर नई चाल के जैसी लगती है।
Darlings में लीड रोल यानि बदरू के किरदार में Alia Bhatt हैं, और हमज़ा के किरदार में Vijay Verma हैं। बदरू की माँ शमसुनिसा के किरदार में Shaifali Shah हैं। वहीं जुल्फी के किरदार से मलयाली फ़िल्मों के अभिनेता Roshan Mathew पहली बार हिंदी भाषी फ़िल्म में नज़र आएँ हैं।
इसके अलावा Rajesh Sharma सहित कई मराठी इंडस्ट्री के कलाकार सहयोगी भूमिकाओं में हैं।
फिल्म की शुरुआत गुलजार के लिखे बोल, प्रशांत पिल्लई की भारी आवाज और विशाल भारद्वाज के लाउड म्यूजिक के साथ होती है।अगले कुछ ही मिनटों में कहानी तीन साल लंबी छलांग मार देती है और इसका प्लॉट सेट होता एक मिडिल क्लास न्यूक्लियर फैमिली में, जिसके दो पहिये बदरूनिसा उर्फ बदरू और हमजा शेख हैं।
हमजा शेख पेशे से रेल्वे में टीसी हैं लेकिन उनके जॉब टाइटल के मायनों को कुछ अलग ढंग से पेश किया गया है, बात करें बदरू की तो वह आम महिला हैं जो शादी के बाद बच्चे, बड़ा सा घर और चार पहिया गाड़ी का सपना बुन रहीं हैं।
लेकिन सबकुछ इतना स्मूद होता तो शायद यह पिक्चर पर्दे पर ना होती, कहानी में ट्विस्ट ये है कि हमजा को शराब की बुरी लत है और जरा जरा सी बात पर अपनी पत्नी यानि बदरू को पीटता है।
पहले आधे घंटे तक कहानी इस पृष्ठभूमि को बुनती है, इसके बाद कुछ हवा के छोकों से पृष्ठभूमि डगमगाती है लेकिन पौने घंटे तक सबकुछ स्थिर होने लगता है।
एक से सवा घंटे की दूरी तय करते करतेसंगीत का सहारा लेकर कहानी तेज दौड़ती है, और लगभग एक घंटे लंबे कहानी के दूसरे हिस्से से टकराती है, जहां सब कुछ बिखर सा जाता है।
इसके बाद लड़खड़ाते हुए कहानी, पहले हाफ के कुछ सीन्स को दोहराती हुई, थोड़े से आइडलिज्म और थोड़े रियलिज्म के साथ क्लाईमेक्स तक पहुंचती है।
रिव्यू की बात की जाए तो नए तरह की कहानी को सही ढंग से स्क्रीन पर उतारा गया है। कहानी एक गंभीर मुद्दे को ज़रूर टारगेट करती है लेकिन कभी गंभीर नहीं बीच बीच में हल्की फुल्की कॉमेडी रखी गयी है। कैमरा वर्क की बात की जाए तो क्लोज शॉट्स बेहतर हैं।
विजय मौर्य, जसमीत के रीन औक परवेज़ शेख़ के संवाद कम शब्दों में गहरी बात कह जाते हैं।
एक सीन में शैफाली शाह का किरदार पुलिस इंस्पेक्टर से कहता है कि
“मरद लोग दारू पीकर जल्लाद क्यों बना जाता है।”
तब इंस्पेक्टर जवाब देता है “क्योंकि औरत बनने देती है।”
इसी सीन में एक डायलॉग में तलाक़ के मुद्दे पर शैफाली शाह कहती हैं “ साब ट्विटर वालों के लिए दुनिया बदल गयी है हमारे लिए नहीं।”
इनमें से एक संवाद स्त्रियों द्वारा पोषित पितृसत्ता की ओर इशारा करता है तो दूसरा सोशल मीडिया और ज़मीनी हक़ीक़त के अंतर को दर्शाता है।
कुछ निगेटिव प्वाइंट को देखा जाए तो फ़िल्म का दूसरा हाफ़ स्लो पेस पर चलता है जिसे थोड़ी रफ़्तार दी जा सकती थी। कहानी में कहीं बताया तो नहीं जाता लेकिन फिर भी पता लगता है कि कहानी मुंबई सेट है लेकिन किरदारों की भाषा में हैदराबादी लहजा अटपटा सा लगता है, इसका बड़ा कारण कहानी का मुस्लिम पृष्ठभूमि होना हो सकता है।
अभिनय की बात की जाए तो Alia Bhatt से पहले Vijay Verma की तारीफ़ बनती है उनके किरदार से आपको शुरूआत से ही नफ़रत होने लगती है। Alia Bhatt भी अपने दम पर कहानी को आगे बढ़ाती हैं।
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Shaifali Shah का किरदार कहानी की माँग पर छोटा है लेकिन वह उसमें सही नज़र आती हैं। यहाँ मेजर्स से इस पर शिकायत की जा सकती है क्योंकि हम फ़ैन के तौर पर उन्हें और अधिक देखना चाहते हैं। Roshan Mathew जितने भी दिखे है ठीकठाक लगे हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो सामाजिक मुद्दे और हल्के से डार्क थ्रिलर के साथ इस वीकेंड Darlings एक अच्छा सौदा हो सकता है।
- सत्यम
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