बाप बेटे का रिश्ता, एक बस ड्राईवर और यात्री के जैसे होता है; सफ़र तो साथ करते हैं, लेकिन ज़रूरत से ज़्यादा बात नहीं होती।पिता पुत्र के रिश्ते की पृष्ठभूमि को पुष्ट करता यह संवाद सत्ताईस मई से सोनी लिव पर स्ट्रीम हो रही निर्मल पाठक की घर वापसी नामक वेब कथा से है। जी हाँ वेब कथा। इस सीरिज़ को जब भी आप परदे पर देखेंगे तो आपको लगेगा कि जैसे आप हिंदी साहित्य का कोई उपन्यास पढ़ रहें हैं।
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Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi- Vaibhav Tatwawadi |
यह एक और कहानी है जो गाँव की पृष्ठभूमि पर रची गई है। कुछ ही शब्दों में कहा जाना हो तो सीरिज़ गाँव और शहर के बीच विचारों के टकराव को दिखाने की कोशिश करती है और कई मायनों में सफल भी रहती है।
कास्ट की बात की जाए तो मुख्य किरदार यानि निर्मल पाठक की भूमिका में वैभव तत्त्ववादी हैं। उनकी माँ के किरदार में अल्का अमीन, भाई के किरदार में आकाश मखीजा, चाचा के किरदार में पंकज झा हैं। इसके अलावा विनीत कुमार समेत अन्य सहयोगी कास्ट है।
कहानी का प्लॉट गंगा के दोआब और बिहार-उत्तर प्रदेश की सीमा यानि बक्सर में स्थित है। कहानी की शुरुआत निर्मल वर्मा के किताबी लहजे से होती है। वह चौबीस साल बाद अपने गाँव लौट रहें है। चौबीस साल पहले उनके पिता किन्ही कारणों से गाँव छोड़कर चले गए थे। लेकिन इनकी माँ यहीं रह गयीं थी।
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इन चौबीस सालों में बहुत कुछ बदला लेकिन नहीं बदली तो बस गाँवों की संकीर्ण मानसिकता। कहानी का मुख्य फ़ोकस इसी मानसिकता पर है। सीरिज़ छूआछूत, मध्यम वर्ग की ग़ैर सशक्त महिलाओं, सरकारी स्कूल व्यवस्था ऐसा कई सामाजिक मुद्दों को छूती है।
सामाजिक मुद्दों के बीच कहानी में नाज़ुक मोड़ से गुजरते रिश्तों को भी दिखाया गया है। तो क्या निर्मल भैया सामंतवादी सोच से लड़ पाएँगे या उन्हें भी शहर वापिस लौटना पड़ेगा। इसका जवाब आप पाँच एपिसोड में खोज सकते हैं।
Nirmal Pathak Ki Ghar Wapsi Review In Hindi
समीक्षा की बात की जाए तो कहानी पूरी ढंग से मुद्दों को पकड़ती है। और आज भी गाँवों में व्याप्त ओछी मानसिकता पर व्यंग्य कसती है। लेकिन पूरी सीरिज में देखा जाए तो कहीं ना कहीं कसावट की कमी नज़र आती है।
कुछ एपिसोड शुरू किसी ओर मक़सद से होते है लेकिन ख़त्म किसी और ही बिंदु पर हो जाते है। लेकिन कहानी का इमोशनल पक्ष और पारिवारिक बनावट बेहतरीन है। कई सीन ऐसे हैं जो भावुक कर जाते हैं। तो कुछ सीन ऐसे भी हैं जो सामाजिक ताने बाने का सही आकलन करवा जाते है।
कहानी में बिहारी संस्कृति को सहीं ढंग से पकड़ा गया। हालाँकि सीरिज़ का शूट मध्यप्रदेश में हुआ लेकिन यहाँ मेकर्स ने जिस ढंग से बिहार को स्थापित किया वह तारीफ़ के लायक़ है। चाहे गंगा के प्रति ममत्व हो या लिट्टी चोखा के प्रति लगाव सब कुछ निखर के सामने आता है।
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कुछ कुछ सीन ऐसे हैं जिनमें कोई भी किेरदार कुछ भी नहीं कहता लेकिन कहानी में बहुत कुछ घट रहा होता है। एक दृश्य में अलमारी में मोहन राकेश और निर्मल वर्मा की दो-दो किताबें नज़र आती है, यह दृश्य सीरिज़ के सार को समझाता है।
अभिनय में वैभव का प्रदर्शन कमाल का रहा है। लेकिन कुछ जगहों पर अल्का अमीन उन पर हावी होतीं हैं। अल्का अमीन ने बिहारी भाषा को सही ढंग से पकड़ा है। कई सीन में अल्का डायलॉग नहीं बोलती मात्र उन्हें ही फ़िल्माया जाता है जहां उनका अभिनय ज़ोरदार है।
इसके अलावा अतिश यानि आकाश मखीजा ने दोहेरे चरित्र को बहुत सही पकड़ा है। वहीं पंकज झा कम दिखे हैं लेकिन अच्छा दिखे हैं। निबहा के किरदार में तनिष्क राना इस सीरिज़ की खोज हैं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो यदि आप आदर्शवाद की खोज में रहते हैं, और एक्शन, क्राइम थ्रिलर आपके पसंदीदा है तो यह आपके लिए नहीं है लेकिन यदि आप यथार्थवाद सोच और लेखन शैली में विश्वास रखते हैं तो शो आपके लिए है।
- सत्यम
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