Panchayat Season 02 Review in Hindi
- आपको पसंद है आपका काम ?
- नहीं है, इसीलिए साथ में MBA की भी तैयारी कर रहा हूं।
- "मतलब आप भी नाच ही रहे हैं।"
Panchayat का दूसरा सीजन इस शुक्रवार यानी 20 मई को तयशुदा था, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते बुधवार यानी 18 तारीख से ही Panchayat Season 2 Amazon Prime Video स्ट्रीम होना शुरू हो गया।
यदि अब तक आप ऊपर लिखे संवाद के लिए और अधिक खोज खबर कर रहे हैं, तो छोड़ दीजिए क्योंकि इस संवाद का सही मतलब Panchayat Season 2 देखकर ही पता चलेगा।
![]() | |
|
महामारी के बीच में साल 2020 में आए Panchayat के पहले सीजन ने हिंदी भाषी दर्शकों से लेकर मीम जगत तक जमकर तारीफ बटोरी। जिसके बाद से ही लगातार दूसरे सीजन के लिए उत्सुकता थी।
सरसरी निगाहों से देखा जाए तो दूसरा सीजन भी पहले सीजन की तरह एक छोटे से गांव के कई किस्सों को डिजीटल पर्दे पर रखता है। इस बार किस्सों की संख्या अच्छी खासी है, सीरीज में आठ एपिसोड को जगह दी गई है। तो आइए शब्दों की इस यात्रा में गुजरते हैं एक एक एपिसोड से।
यह भी पढ़ें - Movie Review : KGF Chapter 2 , उम्मीदों पर कहां तक खरी उतर पाई KGF Chapter 2 कहानी
Panchayat Season 02 Cast
Panchayat Season 2 की Cast में पहले सीजन से बहुत सी समानताएं रखती है। जिसमें जितेन्द्र कुमार, रघुवीर यादव, नीना गुप्ता, चंदन राय, फैसल मलिक आदि शामिल हैं। वहीं पिछले सीजन के कुछ किरदारों का विस्तार किया है जिनमें रिंकी यानी सन्विका और भूषण यानी दुर्गेश कुमार शामिल हैं। इसके अलावा सुनीता राजभर, सतीश रे समेत कुछ और सहयोगी किरदार कहानी की मांग पर आते हैं और चले जाते हैं।
![]() |
panchayat season 2 review in hindi |
Panchayat Season 02 Plot
कहानी की शुरुआत फिर वहीं फुलेरा गाँव के ग्राम पंचायत ऑफिस से शुरू होती है। अब शहरी सचिव, गाँव के परिवेश में रच बस चुके हैं। सीजन का पहला एपिसोड “नाच” पंचायत की मिट्टी से शुरू होकर, एक अधबनी सी लव स्टोरी से होता हुआ, नौकरशाही व्यवस्था पर ज़ोरदार तंज कसते हुए समाप्त होता है।
दूसरे एपिसोड “बोल चाल बंद” से ‘’मीठी खीर..और बवासीर वाले चचा’’ आकर पंचायत परिवार की शांत ज़िंदगी में चरस बोना शुरू कर देते हैं। तीसरे एपिसोड “क्रांति” में कहानी सामाजिक मुद्दे की ओर बढ़ती है, जहां क़वायद खुले में शौच मुक्त गाँव की छवि को बरकरार रखने की है।
चौथा एपिसोड “टेंशन” यूँ तो शुरू नशा मुक्ति से होता है लेकिन इसमें नशा मुक्ति के अलावा सब कुछ दिखाया जाता है। साथ ही इसी एपिसोड में प्रधान परिवार को और क़रीब से देखा जा सकता है।
पाँचवें एपिसोड “जैसे को तैसा” में कहानी सीसीटीवी के नज़रिये से दिखाई जाती है, साथ ही राजनीतिक प्रतिद्वंदी के भी दर्शन होते हैं। छठवाँ एपिसोड “औक़ात” इसी राजनैतिक प्रतिद्वंदता को आगे बढ़ाता है साथ ही राजनीति के हाथों जकड़े प्रशासन की हालत दर्शाता है।
सातवें सीज़न “दोस्त यार” में सहीं मायनों में सिद्धार्थ यानि सतीश रे की एंट्री होती है। वहीं दूसरे और राजनीति का रायता थोड़ा और फैलता है।
आठवाँ एपिसोड “परिवार” की शुरुआत तो राजनीति और पंचायत परिवार के बीच आती हल्की दरार से होती है। लेकिन कुछ दूरी पर जाकर ही भावनाओं के सागर में गोते खाने लगता है। और कुछ ऐसे दृश्यों को स्क्रीन पर रखता है जो किसी की भी आँखें गीली कर सकता है।
तीसरे सीज़न की हल्की सी आहट के साथ दूसरे सीज़न की समाप्ति होती है।
यह भी पढ़ें - WEB REVIEW : Gullak सीजन 03 ; नयी किश्त, जायका पुराना
Panchayat Season 02 Review
सीरीज़ की समीक्षा की जाए तो इसमें से कमियाँ ढूंढ निकालना एक कठिन चुनौती साबित होगा। कुछ एक एपिसोड की धीमी रफ़्तार कहीं कहीं पेस को कम करती है। सचिव जी की गाँव से निकलने की उत्कंठा को इस बार कमजोर ही रखा गया है।
लेकिन अंतिम में सब बेहतर नज़र आता है। टीवीएफ की हर सीरीज़ की तरह इस बार भी सीज़न की राइटिंग उसका सबसे बेहतरीन हिस्सा है। बीच बीच में डाले गए इमोशनल और हल्के मुमेंट्स कहानी को पूरा बनाते हैं।
पिछले सीज़न के मुक़ाबले इस सीज़न में गाँव को थोड़ा और विस्तार से दिखाया गया है, लेकिन किसी फ़ालतू किरदार को नहीं बढ़ाने की योजना सही रही।
Panchayat Season 02 Acting Performance
जितेन्द्र कुमार यानि सचिव जी अपने अभिनय के इतिहास को फिर से दोहरा रहे हैं। नीना गुप्ता, रघुवीर यादव एकदम सटीक हैं। सचिव सहायक विकास यानि चंदन राय को लेखन में कम जगह मिली है, लेकिन वह सही क़दमताल करते चलते हैं।
इस सीज़न में फैसल मालिक का अभिनय चौंकाने वाला रहा है। लगभग साढ़े सात एपिसोड तक तो फैसल मलिक अपने चुटीले किरदार को जारी रखते हैं। लेकिन आख़िरी कुछ मिनटों में उनका गंभीर अभिनय आपको असहज कर सकता है।
नये किरदारों में सन्विका बेहतर लगी हैं, हालाँकि उन्हें ज़्यादा संवाद नहीं दिए गए। वहीं दुर्गेश कुमार अपने पहले ही सीन से नफ़रत की हवा को तेज़ कर देते है। उनका अभिनय भी शानदार है। सुनीता राजभर क़रीब क़रीब अपने गुल्लक वाले किरदार को दोहराती हैं।
कुछ छोटे किरदार भी अपना असर छोड़ जाते हैं, जिनमें खुले में शौच मुक्त वाले एपिसोड में विनोद यानि अशोक पाठक और सीसीटीवी वाले एपिसोड में माधव का अभिनय उल्लेख करने योग्य है। विधायक के रूप में पंकज झा भी अच्छे दिखे हैं।
कुल मिलाकर देखा जाए तो मिड वीक में अचानक आए के पंचायत के सीज़न 2 को बिना वीकेंड के इंतज़ार के देखा जा सकता है।
- सत्यम
0 Comments