Web Series Review - Trial By Fire In Hindi


वह सिनेमा घर नहीं, श्मशान था। 

किरदार के इस संवाद के बाद अपनी डायरी में घटना का बिंदु वार विवरण लिख रही नायिका की कलम रूक जाती है और अगले कुछ दृश्यों में सन्नाटा पसर जाता है। शुक्रवार से Netflix पर प्रसारित हो रही Trail By Fire का मर्म इन्हीं छोटी छोटी लेकिन निश्चित अंतराल के बाद आने वाली चुप्पियों में छुपा है।


Trial By Fire 1997 में दिल्ली के उपहार सिनेमा में लगी आग की घटना को केन्द्र में रखकर दिखाती है। जिसका आधार, इस घटना के पीड़ित नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति द्वारा लिखी किताब Trial By Fire है। 


Trial By Fire Review In Hindi


13 जून 1997 को देशभर में बहुचर्चित फ़िल्म Border रिलीज हुई। देशभक्ति से ओत प्रोत इस फ़िल्म को देखने के लिए सिनेमाघरों में दर्शकों का हुजूम उमड़ पड़ा। ऐसी ही कुछ तस्वीर थी दिल्ली स्थित उपहार सिनेमा की। लगभग एक हजार लोगों से भरे सिनेमा हॉल में फ़िल्म का प्रदर्शन शुरू हुआ। 

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लोगों ने फ़िल्म के साथ जुड़ना शुरू ही किया था कि सिनेमा घर के ट्रांसफ़ॉर्मर में आग धधक उठी और देखते ही देखते आग ने पूरे सिनेमाघर को अपने आग़ोश में ले लिया। इस घटना में 59 लोगों ने अपनी जान गवाई। इन्हीं 59 लोगों में शामिल थे Trial By Fire में केन्द्रीय भूमिका निभाने वाले नीलम और शेखर कृष्णमूर्ति के दो बच्चें उन्नति और उज्जवल।


सीरिज़ का मुख्य प्लॉट घटना में मरने वाले लोगों को इंसाफ़ दिलाने और दोषियों को सज़ा दिलाने का है। जहां लड़ाई सीधे तौर पर कृष्णमूर्ति दंपति द्वारा निर्मित Association Of Victims of Uphaar Tragedy यानि AVUT और सिनेमा घर के मालिक बड़े उद्योगपति की है, जिसके जेब में पैसे और शासन-प्रशासन की चाबियां है। 


भारतीय क़ानून व्यवस्था के जटिल सिस्टम से गुजर कर न्याय पाना, मुर्दे में जान डालने जैसी प्रक्रिया है। और इसी नाकाम कोशिश को सफल बनाने का प्रयास Trial By Fire करती नजर आती है। 


Trial By Fire को सिनेमाई चश्मे से देखा जाए तो कहानी बहुत हद दर्शकों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करती है। कहानी घटना के हर पहलू को बारीकी से दिखाने का प्रयास करती है। मजबूत सब प्लॉट्स इसे सफल भी बनाते है। मोटे तौर पर देखा जाए तो मुख्य कहानी से उलट सब प्लॉट्स ही है जो लोगों को बांधे रखते है। 


शुरुआती एपिसोड्स में अपने परिवार को खो चुके बुजुर्ग के हालात को देखकर किसी भी सहज व्यक्ति की भावनाओं में भावुकता सकती है। Aashish Vidyarthi, Rajesh Tailang के हिस्से वाली कहानी घटना के बाद बड़े चेहरों को बचाने के लिए छोटे किरदारों की बलि देने वाली बात को पुष्ट करती है। 


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Ratna Pathak Shah और Anupam Kher कहानी के मध्य से प्रवेश करते हैं। लेकिन उनका सब प्लॉट थोड़ा अधपका सा लगता है। इसके के साथ में मध्य के एपिसोड्स में Trial By Fire बहुत धीमी गति से आगे बढ़ती है। जहां दर्शक Skip बटन की और बढ़ने को मजबूर हो जाता है। 


यहीं कहानी बदले से बदलाव की और बढ़ती है और उलझती हुई नजर आती है। Shilpa Shukla, Shardul Bharadwaj समेत कुछेक और प्लॉट्स ठीक से समेटे हुए नज़र नहीं आते। 


अभिनय की बात की जाए तो Abhay Deol और Rajshri Deshpande बहुत बेहतरीन अभिनय करते नज़र आते हैं। इसका सबूत आपको सीरिज़ के शुरुआती कुछ मिनटों में ही देखने को मिल जाता है। इमोशनल सीन्स से लेकर अपने हक़ की आवाज़ उठाने वाले सीन्स तक दोनों मज़बूत नज़र आते हैं। 


Rajesh Tailang, Anupam Kher, Ratna Pathak Shah और Ashish Vidyarthi जैसे दिग्गज अभिनेता बताते हैं कि उन्हें मंझा हुआ कलाकार क्यों कहा जाता है। वहीं Shardul Bharadwaj का उल्लेख करना भी ज़रूरी है। वह अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं। 


इसके अलावा कई किरदार हैं जो बड़े नामों में शामिल तो नहीं हैं लेकिन उनका अभिनय उन्हें जल्द ही इन नामों में शामिल करवाने का माद्दा रखता है।  


कुल मिलाकर कहा जाए तो Trial By Fire जैसी कहानियों में हार जीत से ज्यादा संवेदनाओं दर्शकों को पीड़ितों से जोड़ने पर ज्यादा महत्व देती है और इस जगह तो कहानी खरी उतरती नजर आती है।


-सत्यम (Twitter - @Satyam_evJayte)