Movie Review - Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai

Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai Review In Hindi 

पिछले दिनों ZEE5 पर मनोज बाजपेयी की Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai, Stream हुई। जिसके बाद से ही फ़िल्म लगातार चर्चा में बनी हुई है। आज कल फ़िल्मों के चर्चा में रहने के दो कारण है एक तो फ़िल्म बहुत अच्छी हो दूसरा फ़िल्म विवादित या Propaganda वाली हो। Propaganda वाली अभी एक नई नई फ़िल्म आई है तो शायद आपके ज़हन होगा ही। 

Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai Review In Hindi

Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai के चर्चा में रहने के दोनों ही कारण रहे हैं। रिलीज़ से पहले फ़िल्म बाबा और अंधभक्तों के गले का काँटा बनी और रिलीज़ के बाद से Critics फिल्म पर प्यार जता रहे हैं। तो आइए जानते हैं कैसी है Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai.


एक दौर आया था जब देश में बाबाओं की धरपकड़ बड़ी तेज़ हो गई थी और सफ़ेद चोले के पीछे का काला चेहरा लोगों के सामने आने लगा था। Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai है कि पृष्ठभूमि उसी दौर की है। 


एक बाबा है जिनका आश्रम है। उन्होंने लोगों को जीवन का सार बताने का ठेका ले रखा है। उनका एक और चेहरा है बिल्कुल आसाराम और राम रहीम टाइप। 


यह भी पढ़ें Movie Review - Kathal : The Jackfruit Mystery


जो उभरकर सामने आता है और बाबा के एक भक्त परिवार की बेटी उनपर यौन शोषण का आरोप लगाती है। बात अदालत तक पहुँचती है और कहानी के नायक और शोषित परिवार के वकील के रूप में पूनम चंद सोलंकी यानि Manoj Bajpayee की एंट्री होती है। 


Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai की कहानी बेहद आम और बिना किसी ट्विस्ट और टर्न वाली है। जिसे आप ट्रेलर देखकर समझ सकते हैं। 


शुरुआत में कहानी से और पात्रों से परिचय करवा कर कहानी सीधे कोर्ट रूम में पहुँचती है। जहां पहले तो कुछ वकील बदलते हैं। फिर बालिग़ और नाबालिग में कहानी उलझ जाती है। जहां बहस देखने को तो मिलती है लेकिन उसके के लिए आपको को क़ानून का जानकार बनना पड़ेगा। 


फिर कहानी आगे चलती है तो बाबा का दबदबा देखने को मिलता है जिसमें बड़े वकीलों का हस्तक्षेप, हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और केस से जुड़े अहम लोगों की हत्या दिखाई जाती हैं। 


जब जब कहानी कोर्ट रूम में होती है तो दर्शकों के जोड़ती है लेकिन जब कोर्ट के बाहर आती है तो बिखर सी जाती है। 


ये भी पढ़ें Web Series Jubilee Review In hindi


कोर्ट रूम ड्रामा भी औसत दर्जे का है। हम दुष्कर्म के मुद्दों पर बनी ऐसी फ़िल्मों पहले भी देख चुके है। TVF वाले डायरेक्टर Apoorv Singh Karki क़ानूनी दांव पेंच की दरारों में कहानी भरने से चूक गए हैं। 


हालाँकि उन्होंने किरदारों के बुनावट को मज़बूत रखा है। जिसमें बाबा के ओहदे का आसपास की भीड़ के साथ Glorification करना हो या बड़े वकील की दलीलें सुनने दर्जन भर छोटे वकीलों को खड़ा करना हो।  


कोर्ट में पीड़िता के विपक्ष की दलीलें कमजोर हैं, संवेदनशील सवाल भी आम ही लगते हैं। दिनकर जी की पंक्तियों से महाभारत और आख़िर में रामायण का संदर्भ बढ़िया लगता है। Climax के Closing Statement को भी डायरेक्टर भुनाने में सफल रहे हैं। 


Manoj Bajpayee का अभिनय ही है जिसके लिए आप फ़िल्म Sirf Ek BANDAA Kaafi Hai देख सकते हैं। उन्होंने बड़ी सादगी से किरदार को निभाया है। अदालत के बाहर Murder Attempt सीन में और क्लाइमैक्स में वे स्टैंडआउट करते हैं। 


 Adrija Sinha ने भी बढ़िया अभिनय किया है। लेकिन इसके अलावा किसी के भी पास ज़्यादा कुछ करने को है नहीं। 


- सत्यम (Twitter- @satyam_evJayte)

Post a Comment

0 Comments