INDIA - CHINA ARUNACHAL PRADESH DISPUTE IN HINDI
लेकिन ऐसा पहली बार नहीं जब चीन ने भारत के किसी प्रतिनिधि की यात्रा पर ऐतराज जताया हो। इससे पूर्व वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री मोदी के अरूणाचल प्रदेश यात्रा पर चीन ने सवाल खड़े किए थे। इससे पहले 2017 में रक्षा मंत्री रहीं निर्मला सीतारमण और 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की यात्रा पर भी चीन ने कुछ इसी प्रकार का रवैया अपनाया था।
HISTORY OF ARUNACHAL PRADESH
इतिहास में झांका जाए तो, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में तिब्बत पर चिंग साम्राज्य का अधिकार हुआ करता था। जिसकी जड़े चाइना से जुड़ी थी। अरुणाचल प्रदेश
भी इसी तिब्बत का हिस्सा था। 1912 में तिब्बत ने
चिंग साम्राज्य को उखाड़ फेंका और स्वतंत्र राष्ट्र बना।
1914 में चीन, तिब्बत और ब्रिटिश इंडिया के प्रतिनिधियों ने मिलकर शिमला समझौता को मंजूरी दी। जिसमें तिब्बत और भारत की सीमाएं तय की गयीं। इस समझौते में मैकमोहन रेखा खींची गई और अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया। हालांकि चीन इस समझौते को मानने से इंकार करता है।
इसके बाद
परिस्थितियां बदली भारत आजाद हुआ, भारत ने अपने नक्शे
पर अरुणाचल प्रदेश को दिखाया जो UN ने भी स्वीकारा।
लेकिन 1962 युद्ध के तक तिब्बत पर
चीन का कब्जा हो गया। उसके बाद से ही चीन का मानना है कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का
ही हिस्सा था। इसलिए चीन इसे दक्षिणी तिब्बत के रूप में स्वीकार करता है। इसके
पीछे चीन का तर्क है सांस्कृतिक समानता। अरुणाचल और तिब्बत के लोगों की संस्कृति
एक जैसी है। इसके अलावा अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग मठ बौद्ध धर्म की आस्था का
बहुत बड़ा केन्द्र है। जिससे चीन, अरुणाचल पर बार
बार दावा करता है।
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1962 के युद्ध में तवांग मठ तक चीन ने कब्जा जमा लिया था। लेकिन भारतीय सैनिकों चीन को पीछे खदेड़ दिया। तब से अरूणाचल पूरी तरह से भारत का अभिन्न अंग है। इस तक कनेक्टविटी बढ़ाने के लिए भारत सेला सुरंग का निर्माण कर रहा है।
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