क्या योगी बचा पाएंगे यूपी?





यूपी क्यों बना बीजेपी की चिंता का सबब?

आठ महीनों के बाद देश के सबसे बड़े सूबे उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। जिसकी पृष्ठभूमि अब तैयार हो चुकी है। जिसके लिए सत्ताधारी भाजपा एक्शन मोड में आ चुकी है। जिसकी पुष्टि पिछले दिनों तेजी से बदलते समीकरणों से की जा सकती है। बढ़ती राजनीतिक हलचल से स्पष्ट है कि अगले कुछ दिनों में प्रदेश में कई अहम बदलाव देखने को मिल सकते हैं। सवाल यह है कि वह वह भाजपा सरकार जो 2017 में एक विशाल बहुमत के साथ आई थी, तो अचानक से उस पर इतने प्रश्नचिन्ह क्यों? इस सवाल के एक से अधिक जबाव हो सकते हैं। पहला और शायद सबसे बड़ा कारण हो सकता है कोरोना की दूसरी लहर में सरकारी तंत्र का बुरी तरह विफल हो जाना। स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में बरती गई लापरवाही ने यूपी सरकार की कलह खोल कर रख दी। गंगा के किनारे मिले दफ़न शव सरकारी तंत्र की नाकामी को दर्शाने के बहुत काफी है। वहीं दूसरी ओर देखा जाए तो कोरोना के कठिन दौर में पंचायत चुनाव कराना भी योगी सरकार के खिलाफ जा सकता है। अपने मताधिकार का प्रयोग करने आये प्रवासी वोटर्स, गांवों में कोरोना पहुंचाने के वाहक बने और फिर जो गांवों की दुर्दशा हुई वह जगजाहिर है।

अन्य ठोस कारण के तौर पर किसान आंदोलन को भी देखा जा सकता है। साल के शुरुआत में किसान आंदोलन अपने चरम पर था। जिसका असर उत्तरप्रदेश में व्यापक तौर पर दिखा। साथ ही पंचायत चुनाव में बीजेपी के गढ़ माने जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिली हार, योगी आदित्यनाथ सरकार की जड़े कमजोर करती है।

कौन होगा सीएम योगी का उत्तराधिकारी?

इस बात पर चर्चा करने से पहले यह जानना जरूरी है आखिर योगी आदित्यनाथ के विकल्प की तलाश क्यों की जा रही है? 

योगी आदित्यनाथ 2017 में कट्टरवाद तथा एक सशक्त नेतृत्व के रूप में उभरे। उनकी कार्यशैली बहुत कुछ प्रधानमंत्री मोदी की कार्यशैली से मिलती है, जो कि शासन को एक व्यक्ति तक केन्द्रित रखने में विश्वास रखते हैं। इसी रवैये के चलते यह खुलकर सामने आता रहा है कि योगी सरकार सब कुछ ठीक नहीं है। साथ यह भी देखा गया है कि यह यूपी सरकार में कुछ प्राशसनिक अधिकारियों और मंत्रियों प्रभुत्व अधिक है। साथ ही योगी जमीनी स्तर पर समन्वय बनाने में असफल रहे। इसके अलावा यह भी देखा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ  की उपस्थिति में अन्य नेताओं को उतने अधिकार नहीं मिले जितने के वे हकदार थे। जिससे ऐसे नेताओं की नाराज़गी सामने आती रही।

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क्या हैं जतिन प्रसाद के बीजेपी में शामिल होने के मायने

जतिन प्रसाद को बीजेपी में शामिल कराने में गृहमंत्री अमित शाह और रेलमंत्री पीयूष गोयल की अहम भूमिका रही। जतिन प्रसाद यूपी के शाहजहांपुर से संबंध रखते हैं, जहां से उनके पिता तथा कांग्रेस के कद्दावर नेता कुंवर जितेंद्र प्रसाद सासंद हुआ करते थे। कुंवर, राजीव गांधी के करीबी माने जाते थे। इसी प्रकार जतिन भी राहुल गांधी के करीबी माने जाते रहे हैं। वह केन्द्र में मंत्री भी रह चुके हैं। उनका ब्राह्मण वर्ग से आना बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। इस चेहरे के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी राजपूत और ब्राह्मण वर्ग में संतुलन बैठा सकती है। वहीं ओर माना जा रहा है कि जतिन प्रसाद को पार्टी आलाकमान योगी आदित्यनाथ का विकल्प भी मान रही है। लेकिन जतिन को पिछले दो लोकसभा चुनाव और एक विधानसभा चुनाव में मिली हार उनकी राहों को कठिन बनाने का काम करती है।

जातिगत समीकरणों पर नजर

2017 के चुनावों में बीजेपी द्वारा जीती गई सीटों में लगभग 170 सीटें पिछड़े तथा दलित प्रत्याशियों की रहीं। वहीं अंगड़ी जाति के प्रत्याशी के लगभग 140 सीटें जीतने में ही सफल हो सके। इन परिणामों को देखा जाए तो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में पिछला तबका आगे था, जिसमें केशव प्रसाद मौर्य की दावेदारी मजबूत थी। लेकिन मुख्यमंत्री बनाया गया योगी आदित्यनाथ को जो सवर्ण वर्ग से आते हैं। 

वहीं राजपूत और ब्राह्मणों का टकराव भी यूपी में बड़ा मुद्दा है। जिसे राजपूत योगी साधने में नाकाम रहे हैं। इससे पहले जब राजनाथ सिंह, जो कि राजपूत वर्ग से आते हैं, यूपी के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने अपने राजनीतिक कौशल दोनों वर्गों में अच्छा तालमेल बैठाया था। लेकिन योगी आदित्यनाथ कम राजनीतिक जुड़ाव से इसे सुलझाने में विफल रहे हैं। 

वहीं विगत पंचायत चुनाव बताता है कि बीजेपी से पिछड़ी जाति दूर होती दिख रही है।

क्या उत्तर प्रदेश से बनेंगे नये राज्य? 

वहीं पिछले हफ्ते जब योगी आदित्यनाथ केन्द्रीय नेतृत्व से मिलने पहुंचे तो यह कयास भी लगाए जाने लगे कि शायद विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश एक से अधिक राज्यों में बांटा जा सकता है।

अगर संवैधानिक प्रावधानों को देखा जाए तो अनुच्छेद 3 केन्द्र को ऐसा करने का अधिकार देता है। वहीं 2011 में उत्तर प्रदेश विधानसभा राज्य को चार हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव पास कर चुकी हैं। जिसमें बुंदेलखंड , पूर्वांचल, अवध प्रदेश और पश्चिम प्रदेश का उल्लेख मिलता है।

इससे पहले मायावती सरकार पूर्वांचल के गठन का प्रस्ताव केन्द्र को भेज चुकी है। यदि पूर्वांचल का गठन हो जाता है तो समीकरणों के हिसाब से फायदा भारतीय जनता पार्टी को ही होगा।


विभिन्न पहलुओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी यूपी में सत्ता बचाने के लिए कोई हर संभव प्रयास करना चाहती है और बंगाल चुनाव में मिली हार से सबक लेना चाहती है।वहीं जनता का रुख, दूसरी कोरोना लहर के बाद काफी हद उनके खिलाफ है। लेकिन यूपी में विपक्ष और विकल्प की कमी बीजेपी के लिए सत्ता के दरवाजे खोल सकती है।

- SATYAM SINGHAI

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