वेब रिव्यू : द फैमिली मैन S02



" जंगल का एक नियम है जब शेर कमजोर पड़ जाता है तो गीदड़ भी उसे खाने को दौड़ता है। "

ये डायलॉग है 4 जून को अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई वेब सीरीज The Family Man के दूसरे सीजन का। सीरीज के क्रिएटर है राज एंड डीके। 

कई विवादों में फंसने के बाद भी सीरीज के ट्रेलर को मिले अच्छे रिस्पांस के बाद एक अच्छे सीजन की उम्मीद लगाई जा रही थी। यदि सम्पूर्ण तौर पर कहा जाए तो सीजन सब्र का मीठा फल देने में कामयाब रहा है। 

साथ ही विफल होते दूसरे सीजन्स के मिथक को भी तोड़ा है। स्पाइ और क्राइम जॉनर के साथ परिवार वाला एंगल पूरी तरह से जीवंत रखा गया है। कहानी इस बार कुछ राजनीतिक नजरिया तथा नृजातीयता को भी दिखाने का प्रयास करती है।

CAST 

बहुत से किरदार पहले सीजन से ही है। जिसमें मनोज वाजपेयी, शारिब हाशमी, प्रियमनी और शरद केलकर, दर्शन कुमार, साहब अली, सन्नी आहूजा शामिल हैं। समांथा अकनेनी, राजी के नये किरदार में हैं।  रविन्द्र विजय, मुथु पांडियन को निभाते हैं। इसके अलावा सीमा बिस्वास, विपिन शर्मा, देवदर्शिनी चेतन अन्य सहयोगी भूमिकाओं में हैं। वहीं दक्षिण भारतीय अभिनेताओं की लंबी लिस्ट छोटे बड़े किरदारों को निभाती है।

PLOT

कहानी पहले सीजन के बाद से ही शुरू होती है। जहां श्रीकांत अपनी खुफिया नौकरी को छोड़ नौ से पांच जॉब करके परिवार को साधने के प्रयास में है।

कहानी का केन्द्र अब चेन्नई है। शुरुआती एपिसोड्स में पिछली गुत्थी को सुलझा कर। नयी साजिश की पृष्ठभूमि को तैयार किया जाता है। इस बार पुराने दुश्मन को दक्षिणी पड़ोसी देश से सहयोग मिल चुका है जिसके माध्यम से वह अपने पुराने कामों को शक्ल देने का प्रयास कर रहा है। वहीं नया दुश्मन लड़ाई लड़ रहा अपने वजूद की और अपनों के बलिदान की।

एक ओर कहानी सब-प्लॉट्स में लव, जिहाद और मानसिक अवसाद जैसे विषयों को भी दिखाने का प्रयास करती है। 

पिछले बार की तरह ही दुश्मन की साजिश है मानवता को चोट पहुंचाकर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचना।

REVIEW

कहानी में श्रीलंकाई तमिल  मुद्दे को पाकिस्तानी जिहाद के साथ दिखाकर मेकर्स ने नया प्रयास किया जिसकी सराहना करना बनता है। साथ दक्षिण भारतीय भाषा और किरदारों का सफल प्रयोग प्लॉट को प्रासंगिक बनाता है। वहीं फैमिली मोड में कहानी हमेशा उच्च स्तर पर रही है। कहानी में इमोशन को काफी महत्व दिया गया है।

वहीं अगर देखा जाए तो दूसरे मोर्चे पर कहानी औसत नजर आती है। जिसमें मेहनत की कमी लगती है। जिहादी मानसिकता को नाम मात्र के लिए दर्शाया गया है। वहीं हमले की साजिश को इतना कमजोर दिखाया गया है कि वह दर्शकों के मन में डर और उत्सुकता पैदा करने में असफल रहती है। वहीं पहले सीजन में सफल रहे रणनीतिक गतिविधियों पर बिल्कुल तवज्जो नहीं दी गई है।

पहले फाइटिंग सीक्वेंस का इंतजार छठवें एपिसोड में जाकर समाप्त होता है।

अभिनय की बात की जाए तो श्रीकांत और जेके की जोड़ी अपना लोहा मनवाती है। उनकी कॉमिक टाइमिंग माहौल को हल्का बनाती है। वहीं समांथा ने नकारात्मक किरदार की एक नई परिभाषा को लिखा है। वह साधारण महिला और कमांडो दोनों भूमिकाओं में जबरदस्त है। वहीं चाइल्ड एक्टर्स भी अभिनय में नजर कम नहीं आते हैं। साहब अली अपने किरदार सीजन एक से ही जारी रखते हैं। मुथु पांडियन की भूमिका भी अच्छी है। 

अन्य कुछ सहयोगी कलाकार भी कहानी में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाते है।

यदि पूरे सीजन के हिसाब से देखा जाए तो इमोशनल पक्ष मार-धाड़ वाले पक्ष पर हावी नजर आता है। लेकिन वही कहानी को सफल बनाने का कार्य करता है। तमाम बातों के बाद भी कहा जा सकता है कि कहानी औसत से कई ज्यादा बेहतर है।

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