पर्यावरण दिवस विशेष : #SAVEBUXWAHAFOREST


यदि व्यक्ति मृतशय्या पड़ा हो और सांसों के लिए तड़प रहा हो,उसके सामने एक तरफ हीरें हों और दूसरी तरफ सांसें हों और चयन का विकल्प मात्र एक हो। तो वह किसका चयन करेगा
यदि आप से इसका जबाव मांगा जाए तो लगभग सभी सांसों को ही चुनेंगे जो कि तर्कसंगत भी है।

परंतु यह वास्तविकता नहीं है। हमनॆं देखा कि महामारी की दूसरी लहर में ना जानें कितने प्रभावितों ने ऑक्सीजन के अभाव में अपनी जिंदगी गंवा दी। वहीं दूसरी ओर शासन चाहता है कि लगभग सवा दो लाख पेड़ों के जंगल को उसके गर्भ में छुपे हीरों के लिए काट दिया जाए। 

यह मामला है 

मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में स्थित बक्सवाहा (छतरपुर जिला) कस्बे की, जहां देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार पाया गया है। बक्सवाहा जंगल क्षेत्र में 382.131 हेक्टेयर के जंगल में 2.15 लाख वृक्षों के नीचे 3.42 करोड़ कैरेट हीरे के दबे के होने का अनुमान लगाया गया। इन सभी पेड़ों को काटकर जंगल को समाप्त किया जाएगा। इनमें लगभग 40 हजार सागौन वृक्ष तथा केम, पीपल, तेंदू, जामुन, बहेड़ा, अर्जुन जैसे औषधीय वृक्ष हैं।

मामले की जड़े 

दरअसल प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता को देखते हुए बंदर डायमंड प्रोजेक्ट के तहत 2000 से 2005 के बीच हीरों की खदानों की खोज के लिए सर्वे कराया गया। इसी दौरान इस संसाधन का पता लगा। दो साल पहले प्रदेश सरकार ने इस जंगल की नीलामी की, जिसमें आदित्य बिड़ला समूह की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने सबसे ज्यादा बोली लगाई। प्रदेश सरकार यह जमीन इस कंपनी को 50 साल के लिए लीज पर दे रही है। इस जंगल में 62.64 हेक्टेयर क्षेत्र हीरे निकालने के लिए चिह्नित किया है। चिह्नित क्षेत्र पर ही खदान बनाई जाएगी लेकिन कंपनी ने कुल 382.131 हेक्टेयर का जंगल मांगा है, जिसमें बाकी 205 हेक्टेयर जमीन का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जाएगा।

इससे पहले आस्ट्रेलियाई कंपनी रियोटिंटो ने खनन लीज के लिए आवेदन किया था। मई 2017 में संशोधित प्रस्ताव पर पर्यावरण मंत्रालय के अंतिम फैसले से पहले ही रियोटिंटो ने यहां काम करने से इनकार कर दिया था।

वर्तमान स्थिति

राज्य सरकार, वन विभाग इस प्रोजेक्ट को अनुमति दे चुका है। केन्द्रीय पर्यावरण एंव वन मंत्रालय से कारवाई का इंतजार है। इस मामले के प्रकाश में आते ही विभिन्न पर्यावरण कार्यकर्ता तथा स्थानीय युवा सरकार को चेताने का प्रयास कर रहे हैं। फील्ड इंस्पेक्शन के बाद केंद्र इसे मंजूरी दे देगी, और कंपनी काम शुरू करेगी।

क्यों हो रहा है विरोध?

1. हीरे निकालने के लिए पेड़ काटने से पर्यावरण को भारी नुकसान होना तय है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2.15 लाख पेड़ काटे जाएंगे, जबकि वास्तविकता में यह संख्या और भी अधिक हो सकती है। 383 हेक्टेयर वन भूमि बंजर हो जाएगी।

2. इसके अलावा वन्यजीवों पर भी संकट आ जाएगा। मई 2017 में पेश की गई जियोलॉजी एंड माइनिंग मप्र और रियोटिंटो कंपनी की रिपोर्ट में तेंदुआ, बाज (वल्चर), भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर इस जंगल में होना पाया था। हालांकि अब नई रिपोर्ट में इन वन्यजीवों के यहां होना नहीं बताया जा रहा है। दिसंबर में डीएफओ और सीएफ छतरपुर की रिपोर्ट में भी इलाके में संरक्षित वन्यप्राणी के आवास नहीं होने का दावा किया है। महज कुछ सालों में अचानक ही रिपोर्ट्स में इतना बदलाव शंका पैदा करता है। 

3. सरकारी रिपोर्ट के अनुसार प्रोजेक्ट से 400 लोगों को रोजगार मिलेगा। यह संख्या बहुत कम है, इसके अतिरिक्त यह सभी लोग स्थानीय होंगे इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है। ध्यातव्य है कि अनुमानतः 1000 से ज्यादा स्थानीय परिवार जो यहां की वनोपज से जीविकोपार्जन करते हैं, उनके लिए आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा। इन जंगलों में तेंदूपत्ता, बेल, गुली, महुआ जैसी वनोपज कई लोगों के जीविकोपार्जन के स्त्रोत हैं; यदि जंगल नष्ट हो जायेंगे तो इन लोगो का पलायन निश्चित है। 

4. जंगल के बीच से गुजरने वाली एक छोटी सी नदी को डायवर्ट कर बांध बनाया जाना भी प्रस्तावित है, जो प्राकृतिक पर्यावरण के लिए खतरा है।

5. रिपोर्ट्स के अनुसार प्रोजेक्ट में प्रतिदिन 1.60 करोड़ लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होगी। बुंदेलखंड जैसे सूखाग्रस्त क्षेत्र में इतने पानी की आपूर्ति के लिए प्राकृतिक और भूमिगत जल संसाधनों का अनियंत्रित दोहन होना संभाव्य है।

6. किम्बरलाइट चट्टान जिससे हीरा प्राप्त होगा, उसे निकालने के लिए खदान को लगभग 1100 फीट गहरा खोदा जाएगा, जिससे आस-पास के सभी ट्यूबबेल सूख जाने की भयावह आशंका है। सूखाग्रस्त क्षेत्र में भूमिगत जल स्तर और ज्यादा गिरेगा तथा लोग पानी के लिए मोहताज हो जायेंगे।

7. पन्ना टाइगर रिजर्व, भीमकुण्ड, जटाशंकर आदि प्राकृतिक पर्यटन स्थल इस क्षेत्र से लगे हुए हैं। इस प्रोजेक्ट के कारण इन स्थलों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।



स्थानीय लोग क्या कर रहे हैं?

1. इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर विमर्श का मुद्दा बनाने में स्थानीय युवाओं की प्रमुख भूमिका रही है। बुंदेलखंड के युवाओं द्वारा 2 बार इस मुद्दे को ट्विटर पर ट्रेंड कराया जा चुका है, जिसके बाद न सिर्फ यह राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और चिंता का विषय बना है, अपितु देशभर के नामी पर्यावरणविदों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजनेताओं, अभिनेताओं से लेकर आम आदमी तक ने स्वयं को इस मुद्दे से जोड़ा है। विभिन्न राज्यों के कई गैर सरकारी संगठन भी इस अभियान के समर्थन में आए हैं।

2. कोविड गाइडलाइन के कारण ग्राउंड लेवल पर तुरंत आंदोलन शुरू करना संभव नहीं है, ऐसे में अन्य सभी संभव माध्यमों से स्थानीय युवाओं द्वारा टीम बनाकर रणनीतिक रूप से आंदोलन को आगे बढ़ाया जा रहा है।

3. स्थानीय व्यक्तियों को लगातार इस विषय में जागरूक किया जा रहा है, क्योंकि सामान्य तौर पर इसे महज हीरों के लिए पेड़ काटे जाने के एक मुद्दे के तौर देखा जा रहा है, लेकिन वास्तविकता में यह उससे कहीं अधिक है। इसके लिए लोगों से बातचीत करना, गाँवों की दीवालों पर जागरूकता संबंधी नारे लिखवाना, फेसबुक, व्हाट्सएप्प आदि के माध्यम से उन्हें पर्यावरण संरक्षण हेतु प्रेरित करना जैसे उपाय स्थानीय युवाओं की टीम सक्रिय रूप से कर रही है।

4. यद्यपि मुख्य धारा की नेशनल मीडिया पर इस मुद्दे की पर्याप्त चर्चा नहीं है, परंतु प्रिंट मीडिया, अल्टरनेटिव मीडिया प्लेटफॉर्म्स, यूटूबर्स और क्षेत्रीय मीडिया लगातार इस मुद्दे की कवरेज कर रहे हैं।

5. इससे संबंधित याचिका सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुकी है, इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में जाने की भी पूरी तैयारी इन युवाओं की टीम द्वारा की जा रही है। इस हेतु रिसर्च और डॉक्यूमेंटेशन से लेकर समस्त विधिक पक्षों पर लगातार मेहनत की जा रही है।

6. पुनः आगामी 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर दोपहर 2 बजे से युवाओं ने #savebuxwahaforest को ट्विटर पर ट्रेंड कराने का बीड़ा उठाया है। साथ ही "एक दीया प्रकृति के नाम" नामक अभियान के माध्यम से पर्यावरण दिवस की शाम समस्त देशवासियों से एक दीया जलाने का आव्हान किया है। यह इस बात का प्रतीक होगा कि हम सभी पर्यावरण और प्रकृति के लिए साथ खड़े हैं।

                         (अभियान से जुड़े @L_A_L_I_T_ जी से प्राप्त जानकारी के अनुसार)


- SATYAM SINGHAI   




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