WEB REVIEW ; MAHARANI [2021]

 



यदि ज़हर व्यक्ति के शरीर में घुल जाए तो शायद एक बार को मृत्यु से बचा सकता है। लेकिन ज़हर यदि मानसिकता में घोल दिया जाए तो यह बड़े विनाश का कारण बनता है।

ऐसी ही कुछ ओछी सामाजिक मान्यताओं, जादुई कुर्सी की दौड़ और प्रायोजित राजनीतिक रस्साकसी को समेटकर सजाया गया है पिछले हफ्ते सोनी लिव पर प्रदर्शित वेब सीरीज 'महारानी' में।

पटकथा केवल राजनीतिक हाइवे पर सरपट ना दौड़ते हुए जातीय भेदभाव की तंग गलियों से गुजरने का भी प्रयास करती है। इन सब विविधताओं के बावजूद बिहार राजनीति की बेहद 'सनसनीखेज' और एकमात्र महिला मुख्यमंत्री को केन्द्र में रखकर कहानी को गढ़ने का प्रयास किया गया है। कहानी को लिखा है सुभाष कपूर ने और डायरेक्ट किया है करन शर्मा ने।

CAST

हुमा कुरैशी शो की केन्द्रीय पात्र हैं जो कि रानी भारती के किरदार में हैं। इसके बाद कास्ट में गैर नीले टिक वाले अभिनेताओं की एक लंबी सूची है। जिसमें तुम्बड़ वाले सोहम शाह भीमा भारती के किरदार में, प्रमोद पाठक, मिश्रा जी के तथा अमित सियाल, नवीन कुमार की भूमिका में हैं।

इनामुल हक, ने परवेज आलम , विनीत कुमार ने गौरी शंकर, अतुल तिवारी ने राज्यपाल का किरदार निभाया है। दक्षिण भारतीय अभिनेत्री कानी कावेरी के किरदार में हैं। आलोक चटर्जी मुखिया के तो सुशील पांडेय उनके दाएं हाथ बने हैं। हरीश खन्ना 'लाल सलाम' वाले शंकर महतो को निभाते हैं। कानन अरूनाचलम DGP की भूमिका में हैं। इसके अतिरिक्त सहयोगी कलाकारों की लंबी सूची कास्ट वृहद आकार देती है।

PLOT

कहानी शुरू होती भीमा भारती से जो पिछड़े तबके के नेता तथा बिहार के चहेते मुख्यमंत्री हैं। एक दिन अचानक राजनीतिक रंजिश के चलते उन पर जानलेवा हमला होता है जिसके पश्चात उनकी अवस्था पद हेतु अयोग्य हो जाती है। ऐसे में नये दावेदार को लेकर अटकलें तेज होने लगती है।

यहां भीमा भारती 'औचक' फैसला लेकर अपनी निरक्षर पत्नी रानी भारती को नया मुख्यमंत्री नियुक्त करते है। यहां से नये राजनीतिक गाठजोड़ शुरू हो जाते हैं। वहीं दूसरी ओर जातिगत टकराव, कट्टरपंथ, धार्मिक आडम्बर साथ साथ दिखाये जाते हैं। वित्तीय संकट, घोटालों और पार्टी आंतरिक कलह के लंबे संघर्ष के बाद कहानी अंत तक पहुंचती है।

REVIEW

कहानी एक सच्ची घटना से प्रेरित है, लेकिन जीवित किरदारों को में स्क्रीन पर दोहराने का प्रयास नहीं किया गया है जो कि कहानी को एक प्लस प्वाइंट देती है। वहीं जातिगत भेदभाव को दिखा कर एक केवल राजनीतिक न रखने का भी प्रयास किया है। लेकिन पटकथा की कमजोरी पृष्ठभूमि पर पानी फेरने का काम करती है। शो में कई पक्षों को दिखाया गया है जो अपने अनुसार कहानी को मोड़ने का प्रयास करते हैं इसी खींचतान में कहानी च्युंइगम जैसी प्रतीत होती है। बॉलीवुड की हर दूसरी राजनीतिक कहानी को दोहरा कर, सीरीज मध्य में एक बोरिंग दौर भी देती है। 

अभिनय की बात की जाए तो हुमा कुरैशी और सोहम देव की जुगलबंदी बेहतर है। वहीं प्रमोद पाठक, अमित सियाल और इनामुल हक कहानी की आत्मा है। अन्य कलाकारों ने भी अपने किरदारों से न्याय किया है।

अभिनय और भी बेहतर हो सकता था यदि सभी किरदारों में एक बेहतर तालमेल बिठाया जाता। शूरूआती एपिसोड्स में प्रमोद पाठक और अमित सियाल दिखते हैं लेकिन इसके बाद लंबे समय के लिए गायब हो जाते हैं। इनामुल हक बहुत देर से आते हैं। वहीं मुखिया जी, शंकर महतो और गौरी शंकर के प्रयोग में लेखन बुरी तरह असफल रहा है।

कुल मिलाकर बात की जाए तो कहानी औसत नजर आती हैं। लेकिन लगभग 8 घंटे देखने के बाद भी कहानी उन सब सभी सवालों के जबाव देने में असफल रही है जो वह दर्शकों के सामने रखती हैं। कहानी का अंत कुछ हड़बड़ी में प्रतीत होता है।

Post a Comment

0 Comments