WEB REVIEW : काठमांडू कनेक्शन

 


“अगर जिंदगी SURE हो जाए तो मजा ही नहीं रहेगा।“  

यह संवाद कहानी के शुरुआती और क्लाइमेक्स वाले दोनों सिरों को जोड़ने की कड़ी साबित होता है। संवाद हाल ही में SONY LIV पर प्रदर्शित वेब सीरीज KATHMANDU CONNECTION का है। यदि आपने सीरीज का ट्रेलर देखा हो तो कहानी गैंगवार या मर्डर मिस्ट्री टाइप नज़र आती हैं। और पुलिस महकमे को केन्द्र में रखकर यह बहुत हद दिखाने की कोशिश भी की गई है।

CAST

सीरीज में मुख्य भूमिका में मिर्जापुर समेत कई वेब सीरीज, मूवीज में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके अमित सियाल DCP  समर्थ कौशिक के किरदार नज़र आते हैं। अन्य मुख्य भूमिका में अंशुमान पुष्कर एक गैंगस्टर की भूमिका में हैं। वहीं अक्शा प्रियदर्शिनी टीवी जर्नलिस्ट शिवानी भटनागर के किरदार को निभाती है। वहीं अनुराग अरोरा साइडकिक के किरदार को निभाते हैं। वहीं अन्य कास्ट में TVF वाले गोपाल दत्त CBI अफसर की भूमिका निभाते हैं। संजीव चोपड़ा और जाकिर हुसैन भी अन्य किरदार में  है।

PLOT

कहानी की पृष्ठभूमि 1993 में हुये मुम्बई बॉम्ब ब्लास्ट के इर्द गिर्द बुनी गई है।  कहानी के एक मशहूर व्यापारी के अपहरण से शुरू होती है। जिसकी जांच की जिम्मेदारी एनकाउंटर स्पेशलिस्ट समर्थ कौशिक को सौंपी जाती है। इसी केस के तार काठमांडू  से जुड़ते जहां सनी यानि अंशुमान पुष्कर एक गैंगस्टर के रूप में आकार ले रहे हैं। वहीं दूसरी ओर शिवानी भटनागर कुछ समय से आ रहे अनजान फोन कॉल्स से परेशान हैं। इसी बीच कहानी में दाऊद इब्राहिम के एंगल को भी दिखाने का प्रयास किया गया है। कहानी में समर्थ कौशिक की निजी जिंदगी के पहलूओं को भी दिखाया गया है। इन्हीं सब कड़ियों को जोड़ते हुए कहानी कुछ ज़ोरदार और कुछ कमजोर खुलासे करते हुए अपने मुकाम तक है।

REVIEW

कहानी वही पुरानी फर्जी एनकाउंटर वाली पृष्ठभूमि को दोहराने का प्रयास करती है जो कि हिंदी सिनेमा के दर्शक कई बार कई फिल्मों में देख चुके हैं। इसी उधेड़बुन में कहानी ना तो पूरे तरीके से एनकाउंटर को दिखा सकी है न हीं बॉम्बे ब्लास्ट वाले काठमांडू कनेक्शन ही। वहीं अंडरवर्ल्ड और गैंगस्टर की कड़ी भी कई प्रयोगों के बीच कहीं छुप जाती है। वहीं कहानी के कुछ सब प्लॉट के दूसरे से मेल नहीं खाते हैं। वहीं बहुत से ऐसे भी दृश्य है जो कि 90 के दशक के हिसाब से बहुत आधुनिक लगते हैं। कुछ सीन ऐसे भी जो कहानी को बहुत धीमा कर देते हैं और कुछ सीन काफी तेजी आंखों के सामने से गुजरते हैं जिन्हें समझने में काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है। वहीं आधी कहानी में ही काठमांडू से कनेक्शन अलग हो जाता है। अक्शा प्रियदर्शिनी तीन दशक पुरानी महिला के किरदार में बिल्कुल भी फिट नहीं बैठती है। जबकि अमित सियाल हमेशा की तरह कहानी को अपने आस पास ही रखते हैं। वहीं जमतारा फेम अंशुमान अपने किरदार को मजबूती से पकड़े रखते हैं। अनुराग अरोरा और गोपाल दत्त जब जब स्क्रीन पर आते एक नयी ऊर्जा का संचार करते हैं। 

कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो कहानी औसत से नीचे स्तर की नज़र आती हैं। लेकिन यदि आप अमित सियाल के फैन हैं और मिस्ट्री नोबेल पढ़ने के शौकीन हैं तो इस वेबसीरीज को लगभग साढ़े तीन घंटे का समय दिया जा सकता है।


- SATYAM SINGHAI


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