वर्तमान में हमारा देश कोरोना महामारी के बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। पिछले वर्ष एक लंबे समय तक लॉकडाउन जैसी कड़ी पाबंदी झेलने के बाद भी इस महामारी पर पूर्ण रुप से नियंत्रण नहीं पाया जा सका था। लेकिन लंबे संघर्ष के बाद हम महामारी से उबरने लगे थे। जैसे ही हम संभल कर अपने पैरों पर खड़े होने जा ही रहे थे महामारी की दूसरी लहर ने आकर हमारे ऊपर पुनः आक्रमण कर दिया।
इस बार हालात पिछले लहर के मुकाबले बेहद गंभीर और चिंताजनक है। वर्तमान में दौर में उपचार के साथ साथ अंतिम संस्कार के लिए लंबी कतारों में अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। वहीं ऑक्सीजन से तथा अपर्याप्त स्वास्थ्य व्यवस्थायें स्वास्थ्य तंत्र की नाकामी को जगजाहिर कर रही है।
प्राणवायु को तरसते मानव और लगातार प्रयोग से पिघलती चिमनियां इस बात की ओर इशारा कर रही है कि यदि हम अब भी न संभले और अभी भी यदि जिम्मेदार राजनेता अपने चुनावी एक्शन मोड़ से बाहर ना आए तो शायद इससे और असंवेदनशील परिणाम हमें और हमारे परिजनों को भोगने पड़ सकते हैं।
लेकिन इस बात पर चर्चा करना भी जरूरी है कि पिछले दौर में पलायन जैसे दंश झेलने के बाद वह क्या वजह रही जिससे दूसरी लहर ने अपने पैर पसार लिये। और यह जानना भी जरूरी है कि सरकारी तंत्र की विफलता के क्या कारण रहे?
पिछले साल विशेषज्ञों की राय थी कि जिस प्रकार की अव्यवस्थायें महामारी के दौरान देखने को मिली उससे जाहिर होता है कि भविष्य में महामारी का इससे अधिक विकराल स्वरूप देखने को मिल सकता है। हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि 15 महीनों में महामारी की दूसरी लहर आने के क्या कारण रहे।
महामारी से निपटने के लिए सरकार ने रातों- रात लॉक डाउन की घोषणा कर दी। जो कि एक तरीके से अमानवीय तथा मानसिक रूप से परेशान कर देने वाला रहा। साथ ही परिवहन साधनों के अभाव बड़े शहरों से अपने घरों की ओर पैदल लौटे मजदूरों की दशायें इस फैसले को कटघरे में खड़ा करती है। वहीं लॉक डाउन स्वास्थ्य तंत्र और अन्य वर्गों की विफलता भी सरकारी तन्त्र के प्रयासों को दिखाती है।
साथ ही महामारी पर नियंत्रण प्राप्त करने के लिए सरकार के द्वारा अंग्रेजों के दौर का महामारी नियंत्रण कार्यक्रम तथा लगभग दो दशक पुराना आपदा प्रबंधन अधिनियम प्रयोग में लाया गया जो कि आज के दौर में प्रासंगिक नहीं लगता है। पिछले 15 महीनों में जरूरी था कि सरकार एक नया बचाव कानून लाकर नये संकट के लिए तैयार होने का प्रयास करती।
आर्थिक विशेषज्ञों की राय मानी जाती तो नगद धन हस्तांतरण के माध्यम से पुनः अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता था। लेकिन बजट में इस तरह के कोई प्रावधान नहीं किया।
वहीं दूसरी ओर सरकार ने महामारी में कई वैकल्पिक तथा अस्थाई स्वास्थ्य कार्यक्रम की घोषणा की परंतु स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में विफल रही।
सरकार द्वारा अपनाई गई वैक्सीन नीति सार्वभौमिक न होकर केवल क्षणिक सुख के समान प्रतीत होती है। इसीलिए तो आज हमारी जनसंख्या का युवा वर्ग अबतक वैक्सीन से अछूता है।व
वहींचुनावी राज्यों में नियंत्रण के शिथिल प्रयास तथा नेताओं की रैलियों में उमड़ती भीड़ ने महामारी के लिए आमंत्रण का कार्य किया।
लेकिन दूसरी लहर के लिए सरकार को पूर्ण रूप से जिम्मेदार मानना भी ग़लत होगा। यदि देखा जाए तो हम सभी इस महामारी की दूसरी लहर में बराबर के सहभागी हैं। आज से दो महीने पहले की बात की जाए तो हम में से कई लोग मास्क लगाने से परहेज़ करने लगे। वहीं सामाजिक कार्यक्रमों का दौर पुनः रफ्तार पकड़ने लगा था। साथ ही चुनावी रैलियों की भीड़ भी हमसे ही थी।
बहरहाल अब जरूरी है कि हम बचाव के निर्देशों का पालन करें सुरक्षित रहें।
वह सरकार को चाहिए कि जिस प्रकार वह चुनावों में जीत के लिए जी तोड़ मेहनत करती है उसी प्रकार वह महामारी नियंत्रण के लिए प्रयास करें। और एक पारदर्शी तथा सार्वभौमिक वैक्सीन नीति लाने का प्रयास करें।
घर पर रहें, सुरक्षित रहें।
- Satyam Singhai
2 Comments
बहुत ही शानदार सत्यम भाई
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🙏🙏
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